Kabir das ji ne musalmanon ki puja ke vishay mein kya kaha hai
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हिंदू-मुस्लिम धर्म की रूढ़िवादियों पर कटाक्ष करने वाले कबीर और मानवीय मूल्यों के रचनाकार कबीर दास यूं तो भूलने वाले शख्स नहीं हैं लेकिन उनकी 500वीं पुण्यतिथि पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ पूरा देश उन्हें एक बार फिर याद कर रहा है।
पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार।
ताते यह चाकी भली, पीस खाए संसार।।
कबीर ने अपने दोहों के जरिए हिंदू धर्म को निशाने पर लिया तो वहीं मुस्लिम धर्म पर भी उन्होंने जमकर कटाक्ष किया और तर्कवादी और मानवीय मूल्यों को सर्वोपरि रखा।
कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय।
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥
कबीर के जन्म पर ही अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का मानना है कि कबीर रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे जिसको भूल से पुत्रवती होने का रामानंद जी ने आशीर्वाद दे दिया था। ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आई। इसके बाद 'नीमा' और 'नीरु' ने उनका पालन पोषण किया। वहीं कुछ का मानना है कि वह जन्म से ही मुसलमान थे और जुलाहे 'नीमा' और 'नीरु' की वास्तविक संतान थे। हालांकि कबीर ने खुद जुलाहा कहा है।
जाति जुलाहा नाम कबीरा।
बनि बनि फिरो उदासी।।
कबीर ने पारंपरिक तरीके से कोई पढ़ाई नहीं की थी, वह पढ़े-लिखे नहीं थे। वह अपने दोहे केवल बोलते थो और उनके शिष्य उनके बोले हुए दोहे लिखते थे। कबीर ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा उनके शिष्य ने उनके ग्रंथ लिखे हैं। इस पर कबीर का कहना है कि..
मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ।
चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात।।
बता दें कि आज प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर प्रदेश में कबीर के नाम पर बने संत कबीर नगर जाकर मगहर में उनकी समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित किए और कबीर की मजार पर चादर चढ़ाए। वहीं, इससे एक दिन पहले राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक दिन पहले वहां कि स्थिति का जायजा लिया। वहां मुस्लिम व्यक्ति द्वारा उन्हें टोपी पहनाई गई तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया।
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