Kabir Das ke dohe mitrata par
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मथत मथत माखन रहै दही मही बिलगाय
रहिमन सोई मीत है भीर परे ठहराय
जो रहीम दीपक दसा तिय राखत पट ओट
समय परे ते होत हैं वाही पट की चोट ।
टूटे सुजन मनाइये जो टूटे सैा बार
रहिमन फिरि फिरि पोहिये टूटे मुक्ताहार ।
वरू रहीम कानन बसिय असन करिय फल तोय
बंधु मध्य गति दीन ह्वै बसिबो उचित न होय ।
जलहिं मिलाई रहीम ज्यों कियो आपु सग छीर
अगबहिं आपुहि आप त्यों सकल आॅच की भीर ।
कहि रहीम संपति सगे बनत बहुत बहु रीत
विपति कसौटी जे कसे तेई सांचे मीत ।
ये रहीम दर दर फिरहिं मांगि मधुकरी खाहिं
यारो यारी छेाड़िक वे रहीम अब नाहिं ।
रहिमन तुम हमसों करी करी करी जो तीर
बाढे दिन के मीत हेा गाढे दिन रघुबीर ।
रहिमन कीन्ही प्रीति साहब को भावै नही
जिनके अगनित भीत हमैं गरीबन को गनै
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