Kabir das ki Bhakti bhav par prakash dalte huve sodharand vishlesd kijiye
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कबीर दास की भक्ति भाव पर प्रकाश डालते हुवे सोधारणड विश्लेसद कीजिये
कबीरदास जी निर्गुण भक्ति धारा के कवि हैं । जो एक ईश्वर पर विश्वास रखते थे । उन्होंने मूर्ति पूजा काम खंडन किया है । उनके अनुसार यदि पत्थर को पूजने से ईश्वर मिलते हैं तो वह केवल पत्थर को ही पूंजना चाहते हैं । " पाथर पूजै हरी मिले , तो मैं पूनँ पहार । ताते तो चक्की भली , पीसि खाय संसार ॥ " वह समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रयास करते थे । उनका भक्ति मार्ग अत्यंत सरल है वह ईश्वर को मंदिर , मस्जिद में नहीं बल्कि अपने मन में ढूंढ़ने बोलते थे । . वह यह भी है कहते हैं कि नाम से बड़ा इंसान का कर्म होता है इसलिए सदैव कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । ऊंचे कुल का जनमिया , करनी ऊँच न होय । सुबरन कलश सूरा भरा , साधू निंदै सोय ॥
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