Hindi, asked by krishnapatel14820, 10 months ago

Kabir Das ki Bhakti Bhavna Hindi me​

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Answered by mrmental62
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कबीरदास जी निर्गुण भक्ति धारा के कवि हैं। जो एक ईश्वर पर विश्वास रखते थे। उन्होंने मूर्ति पूजा काम खंडन किया है। उनके अनुसार यदि पत्थर को पूजने से ईश्वर मिलते हैं तो वह केवल पत्थर को ही पूंजना चाहते हैं।

''पाथर पूजै हरी मिलै, तो मैं पूजूँ पहार ।

ताते तो चक्की भली, पीसि खाय संसार॥''

वह समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रयास करते थे। उनका भक्ति मार्ग अत्यंत सरल है वह ईश्वर को मंदिर , मस्जिद में नहीं बल्कि अपने मन में ढूंढ़ने बोलते थे।

वह यह भी है कहते हैं कि नाम से बड़ा इंसान का कर्म होता है इसलिए सदैव कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

ऊंचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न होय। सुबरन कलश सूरा भरा, साधू निंदै सोय॥"

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