kabir ka bare mein parischaye kiyjiye
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जीवन-परिचय - भारत के महान संत और आध्यात्मिक कवि कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में हुआ था। ... उन्होंने एक सामान्य गृहस्वामी और एक सूफी के संतुलित जीवन को जीया। ऐसा माना जाता है कि अपने बचपन में उन्होंने अपनी सारी धार्मिक शिक्षा रामानंद नामक गुरु से ली। और एक दिन वो गुरु रामानंद के अच्छे शिष्य के रुप में जाने गये।
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कबीरदास
हिंदी के संत कवियों में कबीरदास का सर्वोच्च स्थान है। कबीर हिंदी की संत काव्यधारा की ज्ञानाश्रयी निर्गुण शाखा के प्रमुख कवि हैं। इनका जन्म संवत् 1455 (सन् 1398) को माना जाता है। इनकी मृत्यु के विषय में भी विवाद है, किंतु अधिकतर विद्वानों ने इसे सन् 1495 माना है।
कबीर ने प्रसिद्ध वैष्णव संत स्वामी रामानंद से दीक्षा ली। कुछ लोग इन्हें सूफ़ी संत शेख तकी का शिष्य भी मानते हैं।
कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। उनके पदों और साखियों में एक समाज सुधारक का निर्भीक स्वर सुनाई पड़ता है। कबीर निर्गुण तथा निराकार ईश्वर के उपासक थे, इसीलिए इन्होंने मूर्ति पूजा, कर्मकांड तथा बाहरी आडंबरों का खुलकर विरोध किया। इन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता का नारा भी बुलंद किया तथा दोनों ही संप्रदायों में व्याप्त रूढ़ियों तथा धार्मिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई तथा राम रहीम की एकता में विश्वास पैदा करने का बीड़ा उठाया।
कबीर की वाणी का संग्रह- 'बीजक' नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं- साखी, सबद और रमैनी । संकलित साखियों (दोहों) में कबीर ने हमें विभिन्न प्रकार की सीख दी हैं।
इनकी भाषा को 'सधुक्कड़ी' या 'पंचमेल खिचड़ी' भाषा कहा जाता है।