Kabir ke aise dohe ka sankalan Karen jismein samajik kuritiyan ka virodh Kiya gaya ho
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कबीर की सामाजिक चेतना के आयाम – ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह
''साँच ही कहत और साँच ही गहत है,
काँच कू त्याग कर साँच लागा।
कहै कबीर यूँ भक्त निर्भय हुआ।
जन्म और मरन का मर्म भागा। '' ...
''सुखिया सब संसार है, खावै अरु सोवै ।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।'' ...
''हम घर जारा आपना, लिया मुराड़ा हाथ ।
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कबीर की सामाजिक चेतना के आयाम – ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह
''साँच ही कहत और साँच ही गहत है,
काँच कू त्याग कर साँच लागा।
कहै कबीर यूँ भक्त निर्भय हुआ।
जन्म और मरन का मर्म भागा। '' ...
''सुखिया सब संसार है, खावै अरु सोवै ।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।'' ...
''हम घर जारा आपना, लिया मुराड़ा हाथ ।
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