Kabir ke anusar Prem Ki Gali Ki ki kya visheshta hai
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प्रेम न बाड़ी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाय !
राजा पिरजा जेहि रुचे, शीश देई लेजाए !!
प्रेम पियाला जो पिये शीश दक्षिणा देय !
लोभी शीश न दे सके,नाम प्रेम का लेय !!
जब मैं था तब गुरु नहीं,अब गुरु हैं हम नाय !
प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाय !!
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gali bahut sankari(tang) hai
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