Hindi, asked by umapandey101, 11 months ago

kabir ke dohe hindi poem ​

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Answered by Vishalkaushik55
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Answer:

don't know(●♡∀♡)(●♡∀♡)(●♡∀♡)(●♡∀♡)

Answered by bhatiamona
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कबीर के द्वारा लिखी एक हिंदी कविता प्रस्तुत है...

झीनी-झीनी बीनी चदरिया,

काहे कै ताना, काहै कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया।

इंगला पिंगला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया॥

आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनी चदरिया।

साँई को सियत मास दस लागै, ठोक-ठोक कै बीनी चदरिया॥

सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी, ओढ़ी कै मैली कीनी चदरिया।

दास ‘कबीर’ जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया॥

कबीर के द्वारा  लिखे दोहे :

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

सीस दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान।।

कबीर जी इस दोहे में कहते है ,  

हमारा शरीर एक विष से व्याप्त पौधे के सामान है , मनुष्य शरीर को गुरु रूपी अमृत ही स्वच्छ कर सकता है| हम  अपने जीवन को गुरु रूपी अमृत पाने के लिए त्याग करना पड़े तो यह सबसे सस्ता रास्ता है |  

—    कबीर दास  जी का दोहा

यह तन काचा कुम्भ है,लिया फिरे था साथ।

ढबका लागा फूटिगा, कछू न आया हाथ॥

कबीर जी इस दोहे में कहते है ,  

मनुष्य शरीर को मिटटी क कच्चे घड़े से तुलना करते है | हे मनुष्य यह तू  शरीर कच्चा घड़ा है,अपने साथ लिए घूमता है , फिरता है | इसमें जता सी चोट लगते ही यह फुट जाएगा तेरे हाथ कुछ भी ही आएगा |

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