Kabir ke dohe on friendship
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कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।।
कबीर दास जी कहते हैं कि वे दुनिया के बाज़ार में खड़े हैं, वे सबका कल्याण
चाहते हैं। उनके मन
में सबके प्रति सद्भावना है। उनकी न
किसी से दोस्ती है और न किसी से दुश्मनी है।
दुनिया सेती दोसती, होय भजन के भंग।
एका एकी राम सों, कै साधुन के संग।।
कबीरदास जी कहते हैं कि दुनिया के लोगों के साथ मित्रता करने से भगवान की भक्ति में बाधा आती है। एकांत में बैठकर भगवान राम का स्मरण करना या साधुओं की संगत करना उचित है। उससे भक्ति बढ़ती है।
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