Hindi, asked by mahimaurmilla, 1 year ago

kabir ke pad summary in hindi

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Answered by irct951236
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1.
प्रेम नगर का अंत न पाया, ज्‍यों आया त्‍यों जावैगा॥
सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्‍या क्‍या बीता॥
सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुड़ावैगा॥
परली पार मेरा मीता खड़िया, उस मिलने का ध्‍यान न धरिया॥
टूटी नाव, उपर जो बैठा, गाफिल गोता खावैगा॥
दास कबीर कहैं समझाई, अंतकाल तेरा कौन सहाई॥
चला अकेला संग न कोई, किया अपना पावैगा॥

2.
रहना नहीं देस बिराना है॥
यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है॥
यह संसार काँटे की बाड़ी, उलझ-पुलझ मरि जाना है॥
यह संसार झाड़ और झाँखर, आग लगे बरि जाना है॥
कहत कबीर सुनो भाई साधो, सतगुरु नाम ठिकाना है॥
Answered by nilesh102
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कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी।

उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।

कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।

कबीर दास भारत के महान कवि और समाज सुधारक थे। कबीर दास (Kabir Das) के नाम का अर्थ महानता से है। वे भारत के महानतम कवियों में से एक थे।

कबीर दास जी के द्धारा कहे गए दोहे इस प्रकार हैं।

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ

इस दोहे से कबीर दास जी का कहने का अर्थ है कि जो लोग कोशिश करते हैं, वे लोग कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

कबीर दास जी के कहे गए उपदेश वाकई प्रेरणा दायक हैं इसके साथ ही कबीर दास ने अपने उपदेशों को समस्त मानव जाति को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी दी इसके साथ ही अपने उपदेशों के द्धारा समाज में फैली बुराइयों का कड़ा विरोध जताया और आदर्श समाज की स्थापन पर बल दिया इसके साथ ही कबीर दास जी के उपदेश हर किसी के मन में एक नई ऊर्जा का संचार करते हैं

जाति जुलाहा नाम कबीरा

बनि बनि फिरो उदासी।

वहीं अगर कबीर पन्थियों की माने तो कबीर दास, काशी में लहरतारा तालाब में एक कमल के फूल के ऊपर उत्पन्न हुए थे।

मसि कागद छूवो नहीं, क़लम गही नहिं हाथ।

आपको बता दें कि कबीरदास जी ने खुद ग्रंथ नहीं लिखे वे उपदेशों को दोहों को मुंह से बोलते थे जिसके बाद उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया।

हम कासी में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेताये।

कबीरदास जी किसी धर्म को नहीं मानते थे बल्कि वे सभी धर्मों की अच्छे विचारों को आत्मसात करते थे।

यही वजह है कि कबीरदास जी ने हिंदु-मुसलमान का भेदभाव मिटा कर हिंदू-भक्तों और मुसलमान फक़ीरों के साथ सत्संग किया और दोनों धर्मों से अच्छी विचारों को ग्रहण कर लिया।

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