kabir ki bhasha shaili par 80-100 shabdh mei prakash daliye
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कबीर की साखियाँ सधुक्कड़ी भाषा में लिखी गई है। कबीर की साखियाँ जनमानस को जीने की कला सिखाती है। कबीर की भाषा में अवधी,पंजाबी,ब्रज, राजस्थानी आदि भाषाओं का समिश्रण है। कबीर ने अपनी साखियों में रोजमर्रा की वस्तुओं को उपमा के तौर पर इस्तेमाल किया है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो कबीर की भाषा ठेठ है। इस तरह की भाषा किसी भी ज्ञान को जनमानस तक पहुँचाने के लिए अत्यंत कारगर हुआ करती थी। कबीर ने अपनी रचना को दोहों के रूप में लिखा है। एक दोहे में दो पंक्तियाँ होती हैं। इसलिए गूढ़ से गूढ़ बात को भी बड़ी सरलता से कम शब्दों में कहा जा सकता है।
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