Hindi, asked by harshsg1779, 8 months ago

Kabir ki Sakhi ke bare me in litho

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Answered by manveerSingh423
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Answer:

Mtlab

Explanation:

Bro kuch detail ma batao

Answered by Anonymous
0

ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई।

अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।

कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।

ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।

सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥

सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।

दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।

बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।

राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।

निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।

बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।

एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥

हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।

अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥

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