kabir ki sakhi मन मह सुमिरन कानिए , हिरदय माहि सपाय ।
होठ होठ सु ना हिल सकै नहिं कोइ पाय ||13||
कि
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मॉफ करिये आपका प्रश्न समझ मे नही आ रहा है।
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