kabir ki sakhiya class9th
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मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।1।
अर्थ - इस पंक्ति में कबीर ने व्यक्तियों की तुलना हंसों से करते हुए कहा है की जिस तरह हंस मानसरोवर में खेलते हैं और मोती चुगते हैं, वे उसे छोड़ कहीं नही जाना चाहते ठीक उसी तरह मनुष्य भी जीवन के मायाजाल में बंध जाता है और इसे ही सच्चाई समझने लगता है।
प्रेमी ढूंढ़ते मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।
अर्थ - यहां कबीर यह कहते हैं की प्रेमी यानी ईश्वर को ढूंढना बहुत मुश्किल है। वे उसे ढूंढ़ते फिर रहे हैं परन्तु वह उन्हें मिल नही रहा है। प्रेमी रूपी ईश्वर मिल जाने पर उनका सारा विष यानी कष्ट अमृत यानी सुख में बदल जाएगा।
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झक मारि।3।
अर्थ - यहां कबीर कहना चाहते हैं की व्यक्ति को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलीचा बिछाना चाहिए। संसार की तुलना कुत्तों से की गयी है जो आपके ऊपर भौंकते रहेंगे जिसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वे स्वयं ही झक मारकर चुप हो जायेंगे।
पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।4।
अर्थ - संत कबीर कहते हैं पक्ष-विपक्ष के कारण सारा संसार आपस में लड़ रहा है और भूल-भुलैया में पड़कर प्रभु को भूल गया है। जो ब्यक्ति इन सब झंझटों में पड़े बिना निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा है वही सही अर्थों में मनुष्य है।
मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।1।
अर्थ - इस पंक्ति में कबीर ने व्यक्तियों की तुलना हंसों से करते हुए कहा है की जिस तरह हंस मानसरोवर में खेलते हैं और मोती चुगते हैं, वे उसे छोड़ कहीं नही जाना चाहते ठीक उसी तरह मनुष्य भी जीवन के मायाजाल में बंध जाता है और इसे ही सच्चाई समझने लगता है।
प्रेमी ढूंढ़ते मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।
अर्थ - यहां कबीर यह कहते हैं की प्रेमी यानी ईश्वर को ढूंढना बहुत मुश्किल है। वे उसे ढूंढ़ते फिर रहे हैं परन्तु वह उन्हें मिल नही रहा है। प्रेमी रूपी ईश्वर मिल जाने पर उनका सारा विष यानी कष्ट अमृत यानी सुख में बदल जाएगा।
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झक मारि।3।
अर्थ - यहां कबीर कहना चाहते हैं की व्यक्ति को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलीचा बिछाना चाहिए। संसार की तुलना कुत्तों से की गयी है जो आपके ऊपर भौंकते रहेंगे जिसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वे स्वयं ही झक मारकर चुप हो जायेंगे।
पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।4।
अर्थ - संत कबीर कहते हैं पक्ष-विपक्ष के कारण सारा संसार आपस में लड़ रहा है और भूल-भुलैया में पड़कर प्रभु को भूल गया है। जो ब्यक्ति इन सब झंझटों में पड़े बिना निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा है वही सही अर्थों में मनुष्य है।
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