Kabir ki sakhiyan...........
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जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। मेल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान। ...
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक। कह कबीर नहिं उलटिए,वही एक की एक। ...
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि। ...
कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ। ...
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
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