kabir ki shakhiya. meaning please
केसन कहाँ बिगारिया, जो मुडै सौ बार।
मन को काहे न मुड़िया, जामे विषै विकार
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बेचारे इन बालों ने क्या बिगाड़ा तुम्हारा,जो सैकड़ों बार मूँड़ते रहते हो अपने मन को मूँड़ो न, उसे साफ करलो न ,जिसमें विषयों के विकार-ही-विकार भरे पड़े हैं ।
स्वांग पहरि सोरहा भया, खाया पीया खूंदि ।
जिहि सेरी साधू नीकले, सो तौ मेल्ही मूंदि ॥6॥
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बेचारे इन बालों ने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा, जो सेंकड़ों बार मुड़ते रहते हो अपने मन को मुडों न, उसे साफ करलो न, जिसमें विषयों के विकार - ही - विकार भरे पड़े हैं।
स्वांग पहरी सोरहा भया, खाया पिया खूंदी।
जिही सेरी साधु निकले, सो तौ मेल्ही मुंदी।।
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