Kabir Rahim Ke Pita kaun the
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रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम (अब्दुर्रहीम) ख़ानख़ाना था। आपका जन्म 17 दिसम्बर 1556 को लाहौर में हुआ। रहीम के पिता का नाम बैरम खान तथा माता का नाम सुल्ताना बेगम था। बैरम ख़ाँ मुगल बादशाह अकबर के संरक्षक थे। रहीम जब पैदा हुए तो बैरम ख़ाँ की आयु 60 वर्ष हो चुकी थी। कहा जाता है कि रहीम का नामकरण अकबर ने ही किया था।
रहीम को वीरता, राजनीति, राज्य-संचालन, दानशीलता तथा काव्य जैसे अदभुत गुण अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे। बचपन से ही रहीम साहित्य प्रेमी और बुद्धिमान थे।
सन 1562 में बैरम खान की मृत्यु के बाद अकबर ने रहीम की बुद्धिमता को परखते हुए उनकी शिक्षा-दीक्षा का पूर्ण प्रबंध अपने जिम्मे ले लिया। अकबर रहीम से इतना प्रभावित हुए कि शहजादो को प्रदान की जाने वाली उपाधि "मिर्जा खान" से रहीम को सम्बोधित करने लगे।
मुल्ला मुहम्मद अमीन रहीम के शिक्षक थे। इन्होने रहीम को तुर्की, अरबी व फारसी भाषा की शिक्षा व ज्ञान दिया। इन्होनें ही रहीम को छंद रचना, कविता, गणित, तर्कशास्त्र तथा फारसी व्याकरण का ज्ञान भी करवाया। इसके बदाऊनी रहीम के संस्कृत के शिक्षक थे।
कबीर हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व हैं। कबीर के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कुछ लोगों के अनुसार वे रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे, जिसको भूल से रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आयी।
कबीर के माता- पिता के विषय में एक राय निश्चित नहीं है कि कबीर "नीमा' और "नीरु' की वास्तविक संतान थे या नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण ही किया था। कहा जाता है कि नीरु जुलाहे को यह बच्चा लहरतारा ताल पर पड़ा पाया, जिसे वह अपने घर ले आया और उसका पालन-पोषण किया। बाद में यही बालक कबीर कहलाया।
कबीर ने स्वयं को जुलाहे के रुप में प्रस्तुत किया है -
"जाति जुलाहा नाम कबीरा
बनि बनि फिरो उदासी।'
कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर की उत्पत्ति काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुई।