Hindi, asked by poojasharma43, 1 year ago

kabirdas
ki rachnaye​

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Answered by riddhi7632
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Answer:

Kabir was a 15th-century Indian mystic poet and saint, whose writings, according to some scholars, influenced Hinduism's Bhakti movement. Kabir's verses are found in Sikhism's scripture Guru Granth Sahib.His most famous writings include his dohas or couplets.Kabir is known for being critical of both Hinduism and Islam, stating that the former was misguided by the Vedas, and questioning their meaningless rites of initiation such as the sacred thread and circumcision respectively.During his lifetime, he was threatened by both Hindus and Muslims for his views. When he died, both Hindus and Muslims had claimed him as theirs.

Answered by mastermaths55
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Answer:

कबीर दास की रचनाएँ

कबीर के द्वारा लिखी गयी पुस्तकें सामान्यत: दोहा और गीतों का समूह होता था। संख्या में उनका कुल कार्य 72 था और जिसमें से कुछ महत्पूर्ण और प्रसिद्ध कार्य है जैसे रक्त, कबीर बीजक, सुखनिधन, मंगल, वसंत, शब्द, साखी, और होली अगम।

कबीर की लेखन शैली और भाषा बहुत सुंदर और साधारण होती है। उन्होंने अपना दोहा बेहद निडरतापूर्वक और सहज रुप से लिखा है जिसका कि अपना अर्थ और महत्व है। कबीर ने दिल की गहराईयों से अपनी रचनाओं को लिखा है। उन्होंने पूरी दुनिया को अपने सरल दोहों में समेटा है। उनका कहा गया किसी भी तुलना से ऊपर और प्रेरणादायक है।

कबीर दास जी की मुख्य रचनाएं

साखी– इसमें ज्यादातर कबीर दास जी की शिक्षाओं और सिद्धांतों का उल्लेख मिलता है।

सबद -कबीर दास जी की यह सर्वोत्तम रचनाओं में से एक है, इसमें उन्होंने अपने प्रेम और अंतरंग साधाना का वर्णन खूबसूरती से किया है।

रमैनी- इसमें कबीरदास जी ने अपने कुछ दार्शनिक एवं रहस्यवादी विचारों की व्याख्या की है। वहीं उन्होंने अपनी इस रचना को चौपाई छंद में लिखा है।

कबीर दास जी की अन्य रचनाएं:

साधो, देखो जग बौराना – कबीर

कथनी-करणी का अंग -कबीर

करम गति टारै नाहिं टरी – कबीर

चांणक का अंग – कबीर

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार – कबीर

मोको कहां – कबीर

रहना नहिं देस बिराना है – कबीर

दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ – कबीर

राम बिनु तन को ताप न जाई – कबीर

हाँ रे! नसरल हटिया उसरी गेलै रे दइवा – कबीर

हंसा चलल ससुररिया रे, नैहरवा डोलम डोल – कबीर

अबिनासी दुलहा कब मिलिहौ, भक्तन के रछपाल – कबीर

सहज मिले अविनासी / कबीर

सोना ऐसन देहिया हो संतो भइया – कबीर

बीत गये दिन भजन बिना रे – कबीर

चेत करु जोगी, बिलैया मारै मटकी – कबीर

अवधूता युगन युगन हम योगी – कबीर

रहली मैं कुबुद्ध संग रहली – कबीर

कबीर की साखियाँ – कबीर

बहुरि नहिं आवना या देस – कबीर

समरथाई का अंग – कबीर

पाँच ही तत्त के लागल हटिया – कबीर

बड़ी रे विपतिया रे हंसा, नहिरा गँवाइल रे – कबीर

अंखियां तो झाईं परी – कबीर

कबीर के पद – कबीर

जीवन-मृतक का अंग – कबीर

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार – कबीर

धोबिया हो बैराग – कबीर

तोर हीरा हिराइल बा किचड़े में – कबीर

घर पिछुआरी लोहरवा भैया हो मितवा – कबीर

सुगवा पिंजरवा छोरि भागा – कबीर

ननदी गे तैं विषम सोहागिनि – कबीर

भेष का अंग – कबीर

सम्रथाई का अंग / कबीर

मधि का अंग – कबीर

सतगुर के सँग क्यों न गई री – कबीर

उपदेश का अंग – कबीर

करम गति टारै नाहिं टरी – कबीर

भ्रम-बिधोंसवा का अंग – कबीर

पतिव्रता का अंग – कबीर

मोको कहां ढूँढे रे बन्दे – कबीर

चितावणी का अंग – कबीर

कामी का अंग – कबीर

मन का अंग – कबीर

जर्णा का अंग – कबीर

निरंजन धन तुम्हरो दरबार – कबीर

माया का अंग – कबीर

काहे री नलिनी तू कुमिलानी – कबीर

गुरुदेव का अंग – कबीर

नीति के दोहे – कबीर

बेसास का अंग – कबीर

सुमिरण का अंग / कबीर

केहि समुझावौ सब जग अन्धा – कबीर

मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा – कबीर

भजो रे भैया राम गोविंद हरी – कबीर

का लै जैबौ, ससुर घर ऐबौ / कबीर

सुपने में सांइ मिले – कबीर

मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै – कबीर

तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के – कबीर

मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै – कबीर

साध-असाध का अंग – कबीर

दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ – कबीर

माया महा ठगनी हम जानी – कबीर

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो – कबीर

रस का अंग – कबीर

संगति का अंग – कबीर

झीनी झीनी बीनी चदरिया – कबीर

रहना नहिं देस बिराना है – कबीर

साधो ये मुरदों का गांव – कबीर

विरह का अंग – कबीर

रे दिल गाफिल गफलत मत कर – कबीर

सुमिरण का अंग – कबीर

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में – कबीर

राम बिनु तन को ताप न जाई – कबीर

तेरा मेरा मनुवां – कबीर

भ्रम-बिधोंसवा का अंग / कबीर

साध का अंग – कबीर

घूँघट के पट – कबीर

हमन है इश्क मस्ताना – कबीर

सांच का अंग – कबीर

सूरातन का अंग – कबीर

हमन है इश्क मस्ताना / कबीर

रहना नहिं देस बिराना है / कबीर

मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया – कबीर

कबीर की साखियाँ / कबीर

मुनियाँ पिंजड़ेवाली ना, तेरो सतगुरु है बेपारी – कबीर

अँधियरवा में ठाढ़ गोरी का करलू / कबीर

अंखियां तो छाई परी – कबीर

ऋतु फागुन नियरानी हो / कबीर

घूँघट के पट – कबीर

साधु बाबा हो बिषय बिलरवा, दहिया खैलकै मोर – कबीर

करम गति टारै नाहिं टरी / कबीर

इसके अलावा कबीर दास ने कई और महत्वपूर्ण कृतियों की रचनाएं की हैं, जिसमें उन्होंने अपने साहित्यिक ज्ञान के माध्यम से लोगों का सही मार्गदर्शन कर उन्हें अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।

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