Hindi, asked by srishtitripathi66, 8 months ago

kabirdas ki ulti bani barse kambal bheege pani ka arth​

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Answered by Anonymous
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कबीरदास की उलटी वाणी, बरसे कम्बल भींजे पानी।” यह कबीर के भजन बारे में कहा जाता हैं क्योंकि वह बहुत ही अजीब और जटिल हैं जल्दी समझ में नहीं आता।

असल में इस भजन में कबीर ने ईश्वर प्राप्ति की साधना से लेकर ईश्वरानुभूति पाने तक का वर्णन इस भजन में किया है। उनके अनुसार विद्वान व्यक्ति वह हैं जो जीवन-मरण के बंधन से मोक्ष दिलाने वाणी की खोज में रहे। ऐसी वाणियों को समझने-बूझने की जरुरत होती है, तभी वो हमें कोई लाभ दे सकती है।

इस मुहावरे का अर्थ है कि हर व्यक्ति अपने अंदर सूक्ष्म संस्कार रूपी कम्बल से ढका हुआ हैं, जिसमे कई जन्मों के संस्कार हैं। मगर जब भक्ति रूपी संस्कार के कम्बल बरसतें हैं, अर्थात जीवन सक्रीय व क्रियाशील हो जाता हैं, तब कहीं जाकर इंसान का ह्रदय भक्ति के जल में भींगने लगता है।

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