कछु नहि नीच न छेडिए भलो न वाको सन्ग |
पाथर डारै कीच मै उछरि बिगारै अन्ग ||
प्रस्तुत दोहे का अर्थ लिखिए|
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कछु नहि नीच न छेडिए भलो न वाको सन्ग |
पाथर डारै कीच मै उछरि बिगारै अन्ग ||
प्रस्तुत दोहे का अर्थ :
कबीर जी इस दोहे में समझाना चाहते है कि , किसी भी दुर्जन या दुष्ट व्यक्ति को कुछ भी नहीं कहना चाहिए , उसकी संगती में कभी भी किसी की भलाई नहीं होती है |जिस प्रकार कीचड़ में पत्थर डालने से , पत्थर फेंकने वाला का ही शरीर गंदा होता है | उसी प्रकार दुर्जन व्यक्ति से व्यवहार से रखने पर व्यवहार करने वाला व्यक्ति ही बुरा बनता है |
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