कछावा वंश कि उत्पती
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कछवाहा वंश राजस्थान के इतिहास में प्रसिद्ध चौहानों की एक शाखा, जो राजस्थानी इतिहास के मंच पर बारहवीं सदी से दिखाई देता है। कछवाहों को प्रारम्भ में मीणा और बड़गुर्जरों का सामना करना पड़ा था। इस वंश के प्रारम्भिक शासकों में दुल्हराय व पृथ्वीराज बडे़ प्रभावशाली थे, जिन्होंने दौसा, रामगढ़, खोह, झोटवाड़ा, गेटोर तथा आमेर को अपने राज्य में सम्मिलित किया था।
मुग़लों से सम्बंध
कछवाहे पृथ्वीराज चौहान, राणा सांगा का सामन्त होने के नाते 'खानवा के युद्ध' (1527) में मुग़ल बादशाह बाबर के विरुद्ध लड़े थे। पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद कछवाहों की स्थिति संतोषजनक नहीं थी। गृहकलह तथा अयोग्य शासकों से राज्य निर्बल हो रहा था। 1547 ई. में राजा भारमल ने आमेर की बागडोर अपने हाथ में ली। भारमल ने उदीयमान अकबर की शक्ति का महत्त्व समझा और 1562 ई. में अकबर की अधीनता स्वीकार कर अपनी ज्येष्ठ पुत्री 'हरकूबाई'[1] का विवाह अकबर के साथ कर दिया। अकबर की यह बेगम 'मरियम-उज्जमानी' के नाम से विख्यात हुई। भारमल पहला राजपूत था, जिसने मुग़लों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये थे।[2]
मानसिंह तथा भगवानदास
 मुख्य लेख : मानसिंह एवं भगवानदास
राजा भारमल के पश्चात् कछवाहा शासक मानसिंह अकबर के दरबार का योग्य सेनानायक था। रणथम्भौर के 1569 ई. के आक्रमण के समय मानसिंह और उसके पिता भगवानदासअकबर के साथ थे। मानसिंह को अकबर ने काबुल, बिहारऔर बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया था। वह अकबर के नवरत्नों में शामिल था। बादशाह अकबर ने उसे 7000 का मनसब प्रदान किया था। मानसिंह ने आमेर में 'शिलादेवी मन्दिर', 'जगत शिरोमणि मन्दिर' इत्यादि का निर्माण करवाया था। इसके समय में दादू दयाल ने 'वाणी' की रचना की थी।
मिर्ज़ा राजा जयसिंह
मुग़लों से सम्बंध
कछवाहे पृथ्वीराज चौहान, राणा सांगा का सामन्त होने के नाते 'खानवा के युद्ध' (1527) में मुग़ल बादशाह बाबर के विरुद्ध लड़े थे। पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद कछवाहों की स्थिति संतोषजनक नहीं थी। गृहकलह तथा अयोग्य शासकों से राज्य निर्बल हो रहा था। 1547 ई. में राजा भारमल ने आमेर की बागडोर अपने हाथ में ली। भारमल ने उदीयमान अकबर की शक्ति का महत्त्व समझा और 1562 ई. में अकबर की अधीनता स्वीकार कर अपनी ज्येष्ठ पुत्री 'हरकूबाई'[1] का विवाह अकबर के साथ कर दिया। अकबर की यह बेगम 'मरियम-उज्जमानी' के नाम से विख्यात हुई। भारमल पहला राजपूत था, जिसने मुग़लों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये थे।[2]
मानसिंह तथा भगवानदास
 मुख्य लेख : मानसिंह एवं भगवानदास
राजा भारमल के पश्चात् कछवाहा शासक मानसिंह अकबर के दरबार का योग्य सेनानायक था। रणथम्भौर के 1569 ई. के आक्रमण के समय मानसिंह और उसके पिता भगवानदासअकबर के साथ थे। मानसिंह को अकबर ने काबुल, बिहारऔर बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया था। वह अकबर के नवरत्नों में शामिल था। बादशाह अकबर ने उसे 7000 का मनसब प्रदान किया था। मानसिंह ने आमेर में 'शिलादेवी मन्दिर', 'जगत शिरोमणि मन्दिर' इत्यादि का निर्माण करवाया था। इसके समय में दादू दयाल ने 'वाणी' की रचना की थी।
मिर्ज़ा राजा जयसिंह
viksou:
So so long
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