'कहूँ हाड़ परौ, कहूँ जरौ अधजरौ मांस
कहूँ गीध भीर, मांस नोचत अरी अहै'- पंक्ति में रस है-. please tell
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'कहूँ हाड़ परौ, कहूँ जरौ अधजरौ मांस
कहूँ गीध भीर, मांस नोचत अरी अहै'।
पंक्ति में रस है...?
➲ वीभत्स रस
⏩ उपरोक्त पंक्तियों में वीभत्स रस है। वीभत्स रस काव्य के प्रमुख नवरसों में से एक प्रमुख रस है। इस रस की उत्पत्ति अक्सर दुखात्मक कार्यों से संबंधित मानी जाती है। इस कारण करुण रस, भयानक रस तथा रौद्र रस यह तीनों रस भी वीभत्स रस के सहयोगी रस की तरह कार्य करते हैं।
वीभत्स रस का स्थाई भाव जुगुप्सा है। इसकी उत्पत्ति अप्रिय, दूषित, प्रतिकूल आदि निर्धारक तत्वों से होती है। आवेग, मोह, व्याधि, क्रोध, चिड़चिड़ाहट आदि इसकी क्षणभंगुर भावनाएं कहलाती है।
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