कहा जाता है कि प्रशासनिक-तंत्र के कामकाज में बहुत ज्यादा राजनीतिक हस्तक्षेप होता है। सुझाव के तौर पर कहा जाता है कि ज्यादा से ज्यादा स्वायत्त एजेंसियाँ बननी चाहिए जिन्हें मंत्रियों को जवाब न देना पड़े।
(क) क्या आप मानते हैं कि इससे प्रशासन ज्यादा जन-हितैषी होगा?
(ख) क्या आप मानते हैं कि इससे प्रशासन की कार्य कुशलता बढ़ेगी?
(ग) क्या लोकतंत्र का अर्थ यह होता है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण हो?
Answers
हमारे देश भारत में कार्यपालिका दो तरह से कार्य करती हैं। पहली कार्यपालिका राजनीतिक कार्यपालिका है, जो कि जनता द्वारा चुने गये जन-प्रतिनिधियों द्वारा बनी होती है, जो कि अस्थायी होती है, जिसमें चुनाव दर चुनाव परिवर्तन होता रहता है। दूसरी कार्यपालिका प्रशासनिक कार्यपालिका होती है, जो कि सरकारी कर्मचारियों द्वारा बनी होती है, जो अपने-अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता लिये हुये होते हैं।
(क) किसी भी लोकतंत्र में सारी सरकारी संस्थाओं का पूरी तरह से स्वायत्त होना न तो संभव है और न ही उचित है। कुछ विशेष प्रावधानों के साथ एक सीमा में रहकर सरकारी संस्थाओं को स्वायत्त अवश्य होना चाहिये, ताकि उन्हे मंत्रियों आदि के अनावश्यक हस्तक्षेप का सामना न करना पड़े और वो जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनें।
(ख) सरकारी संस्थायें यदि जन-प्रतिनिधियों के बजाए जनता के प्रति अधिक जवाबदेह होंगी तो उनकी कार्य-कुशलता बढ़ेगी। अक्सर ऐसा होता है कि राजनीतिक जन-प्रतिनिधि सत्ता के दंभ में आकर सरकारी संस्थाओं का उपयोग अपने निजी हितों के लिये करने लगते हैं, जिससे जनता के हित प्रभावित होते हैं। लेकिन यदि सरकारी संस्थाओं को पर्याप्त स्वायत्ता मिले और जन-प्रतिनिधियों के अनावश्यक हस्तक्षेप को सीमित कर दिया जाये तो सरकारी संस्थायें अधिक कार्यकुशल हो सकती हैं।
(ग) किसी स्वस्थ लोकतंत्र में सत्ता की संपूर्ण शक्ति किसी एक हाथ में नही होनी चाहिये, बल्कि इसका बंटवारा सभी महत्वपूर्ण संवैधानिक संरचनाओं में समान स्तर पर हो, इससे निरंकुशता नही उत्पन्न होगी। निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण उचित नही है। सरकारी संस्थाओं को संवैधानिक सीमाओं में रखकर स्वायत्तता दी जानी चाहिये। निर्वाचित प्रतिनिधि का भी सरकारी संस्थाओं पर नियंत्रण संवैधानिक सीमाओं में रहकर कुछ विशेष प्रावधानों के अन्तर्गत ही हो ताकि सरकारी संस्थायें जन-प्रतिनिधि के हितो की जगह जनता के हितों के अनुसार कार्य कर पाये। दोनों कार्यपालिकाओं अर्थात राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यपालिकाओं में आपसी तालमेल हो। जन-प्रतिनिधिओं का सरकारी संस्थाओं पर पूर्ण नियंत्रण न हो बल्कि कुछ हद तक नियंत्रण हो ताकि सरकारी संस्थाओं पर जनता के हित के लिये कार्य करने का दवाब बना रहे।
kya aap loktantra ka Arth hota hai ki nirvachit Pratinidhi ka prashasan per niyantran