(६)
कहूं-कहूं गुन ते अधिक, उपजत दोष सरीर।
मधुरी बानी बोलि कै, परत पींजरा कीर।।
इस पंक्ति का सारांश
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कहूं-कहूं गुन ते अधिक, उपजत दोष सरीर।
मधुरी बानी बोलि कै, परत पींजरा कीर।।
✎... अर्थात अगर मैं स्वयं को देखूं तो मेरे अंदर गुण से अधिक दोष निकलेंगे, ये बात कहने में कोई संकोच नही होना चाहिए। अर्थात इस शरीर में गुणों से ज्यादा दोष हैं, बुराइयां हैं, लेकिन हमें अपने इन दोष और बुराइयों को मीठी वाणी बोल कर मिटा सकता हूँ। मीठी वाणी वो गुण है, जो अनेक दोषों को कम कर सकता है, कड़वाहट को मिटाता है।
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