कहानी बेमिसाल जवाब - [ ] सर आशुतोष मुखर्जी एक बार सीधे - सादे कपड़ों में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे । उसी डिब्बे में एक अंग्रेज़ भी बैठा था । उसे अपने साथ एक भारतीय का सफ़र करना अच्छा नहीं लगा । उसने कई बार सर आशुतोष से डिब्बा बदलने के लिए कहा , लेकिन उन्होंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया । अंग्रेज़ का ग़ुस्सा बढ़ता गया और रात में जब सर आशुतोष सो गए. तो उसने उनका जूता उठाकर खिड़की से बाहर फेंक दिया । थोड़ी देर में सर आशुतोष की नींद खुली तो उन्हें अपना जूता नदारद मिला । वे समझ गए कि यह हरकत किसने ke है । अंग्रेज़ खर्राटे भर रहा था । उन्होंने उसका कोट खूँटी से उतारा और बाहर फेंक दिया और आराम से बैठ गए । थोड़ी देर बाद जब अंग्रेज़ उठा तो चारों और देखकर उसने पूछा ," मेरा कोट कहाँ है ?" आपका कोट मेरा जूता लाने गया है । सर आशुतोष ने मुस्कराते हुए कहा । जवाब के तरीक़े से अंग्रेज़ को यह भाँपते देर नहीं लगी कि वह कोई मामूली आदमी नहीं है । इसलिए उसने उलझना ठीक न समझा और चुपचाप मुँह फेरकर बैठा रहा
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उसे अपने साथ एक भारतीय का सफ़र करना अच्छा नहीं लगा । उसने कई बार सर आशुतोष से डिब्बा बदलने के लिए कहा , लेकिन उन्होंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया । अंग्रेज़ का ग़ुस्सा बढ़ता गया और रात में जब सर आशुतोष सो गए. तो उसने उनका जूता उठाकर खिड़की से बाहर फेंक दिया । थोड़ी देर में सर आशुतोष की नींद खुली तो उन्हें अपना जूता नदारद मिला । वे समझ गए कि यह हरकत किसने ke है । अंग्रेज़ खर्राटे भर रहा था । उन्होंने उसका कोट खूँटी से उतारा और बाहर फेंक दिया और आराम से बैठ गए । थोड़ी देर बाद जब अंग्रेज़ उठा तो चारों और देखकर उसने पूछा ," मेरा कोट कहाँ है ?" आपका कोट मेरा जूता लाने गया है । सर आशुतोष ने मुस्कराते हुए कहा । जवाब के तरीक़े से अंग्रेज़ को यह भाँपते देर नहीं लगी कि वह कोई मामूली आदमी नहीं
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