Hindi, asked by joker987, 9 months ago

कहानी के रूप में अपनी कोई एक मौलिक रचना लिखिए।​

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Answered by Anonymous
8

Answer:

यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है.

इस कहानी में एक सेठ होता है जो सवभाव से अत्यंत विनम्र, दयालु और धर्मपरायण होता है. सेठ ने न जाने कितने यज्ञ किये और न जाने कितना धन दीन दुखियों में बाँट दिया. भंडार द्वार सबके लिए खुले रहते. कोई भी उनके द्वार से खाली हाथ न लोटा और भर पेट भोजन पता. सेठ बहुत धनी थे.

पर सब दिन ना होत एक सामान, समय बदला और सेठ को गरीबी का मुँह देखना पड़ा, संगी साथियों ने भी मुँह फेर लिया. हालत इतनी ख़राब हो गई थी की सेठ और सेठानी को खाने के लिए तरसना पड़ा. उन दिनों एक प्रथा प्रचलित थी की जो यज्ञ करता वह अपने yagon के फल का क्रय विक्रय कर सकता था. तो सेठानी ने सेठ जी को अपना एक यज्ञ बेचने को कहा जिसके की घर में खाने को अनाज आ सके. पहले तो सेठ ने मना कर दिया पर जब स्थिति और ख़राब हुई तो सेठ जी यज्ञ बेचने को तैयार हो गए.

उनके गाओं से दस 12 कोस की दूरी पर एक कुंदनपुर नाम का एक गाओं था जहाँ एक धन्ना सेठ रहते थे. उनकी पत्नी के बारे में अफवाह थी की उन्हें कोई दिव्य सकती प्राप्त है.

तो सेठ जी ने वहां अपना एक यज्ञ बेचने का विचार किया.

सेठानी ने पड़ोस से चून माँगा और सेठ के रास्ते के लिए चार मोटी मोटी रोटियां बना दी. और सवेरे सवेरे सेठ जी सफर के लिए चल दिए. रास्ते में वह थक गए और उन्होंने एक विश्राम करना उचित समझा. एक कुआं और पेड़ का कुंज देखा कुए से पानी निकल कर खाने के लिए बैठे ही थे की उनकी नज़र पास ही बैठे कुत्ते पर पड़ी जो मरणासन हालत में था और उसमे उठने की भी ताकत नहीं थी. आस पास कोई गाओ भी नहीं था जहाँ वह कुत्ता रोटी कहा सके. तो सेठ को उस पर बड़ी दया आई और उन्होंने अपनी एक रोटी उस कुत्ते को खिला दी. रोटी खा कर उसकी आँखों में कृतग्यता आई. सेठ ने उसे एक और रोटी खिला दी जिससे कुत्ता सिसकते सिसकते उनके समीप आ गया पर वह अब भी चल नहीं पा रहा था. तो सेठ ने उसे एक और रोटी खिला दी तब भी कुत्ता उनकी और देख रहा था तो सेठ से रहा ना गया और उन्होंने आखरी रोटी भी खिला दी और स्वयं पानी पी कर कुंदनपर के लिए चल दिए.

शाम के समय वहाँ वह धन्ना सेठ के घर गए जहाँ उनकी पत्नी ने उनका स्वागत सत्कार किया. सेठ जी बोले मैं यहाँ अपना यज्ञ बेचने आया हूँ. धन्ना सेठ की पत्नी कहती है की वह सिर्फ आज उनकी द्वारा किया गया महायज्ञ ही खरीदें गी. सेठ जी मुस्कुराते हुए बोले के आप आज की बात कर रही है मने तो बरसों से कोई यज्ञ नहीं किया. वह फीर से अपनी बात दोहराती हैं और कहती हैं की जो यज्ञ आज आपने किया था मैं उसके बारे में बात कर रही हूँ तब सेठ जी को लगा की सेठानी उनका मज़ाक उड़ा रही हैं और जब वह जाने लगे तब सेठानी कहती हैं की रुकिए मैं, आज जो अपने स्वयं रोटियां ना खा कर कुत्ते को खिला दी मैं उस महायज्ञ की बात कर रही हुँ तो सेठ जी कहते हैं की भूखे कुत्ते को खाना खिलाना उनका धर्म और कर्तव्य था, इसलिए वह उसे नहीं बेचेंगे, और उन्हें अपने इस कर्तव्य को बेचना उचित भी ना लगा और वह बिना यज्ञ बेचे अपने घर की और चल दिए.

वहाँ सेठ जी की पत्नी चौखट पर यह आस लगाए बैठी थी की सेठ जी आएंगे तो घर में कुछ काने के लिए रासन आएगा. पर सेठ जी को खाली हाथ वापस आता देख सेठानी उदास हो गई. और उन्हीने यज्ञ के बारे में पूछा तो सेठ ने शुरू से आखिर तक सारी कथा बताई. सुनते ही उनकी पत्नी उनके पैरों की रज अपने माथे पर लगाती हैं और कहती हैं की धन्य हैं मेरे पति जिनको मुश्किल में भी अपना धर्म ना छोड़ा और धन्य हुँ मैं जिसे ऐसे पति मिले.

रात को जब सेठानी दिया जलने बाहर आई तो उन्हें ठोंकर लगी, एक पत्थर बाहर उभर आया था जिसके बिच में एक कुंदा था. तब सेठानी अपने पति को बुलाती हैं हैं और वे दोनों उस कुंदे को खोलते हैं और पाते हैं वहाँ निचे जाने के लिए सीढ़िया आ जाती हैं उन सीढ़ियों से होकर वह एक हिरे मोतियों से भरे तहखाने में पहुँच जाते हैं और अचनाक से वहाँ तेज प्रकाश में भगवान विष्णु प्रकट होते हैं और कहते हैं के ओ सेठ यह तेरे महायज्ञ का पुरस्कार हैं, तूने स्वयं रोटियां ना खा कर सारी रोटियां कुत्ते को खिला दी यह तेरा पुरस्कार हैं. सेठ और सेठानी भगवान विष्णु को प्रणाम करते हैं और..... राहत की सांस लेते हैं की अब उनकी सारी परेशानियां ख़तम हुई और कहते हैं की भगवान विष्णु को अपने समक्ष पा कर उनका मानव जीवन सफल हो गया.

THE END

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