Hindi, asked by pv736337, 3 months ago

कहानी का सारंस
गुदड साँई (220 words )​

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Answered by ishwardeswal096
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Answer:

साईं! ओ साईं!!’’ एक लड़के ने पुकारा। साईं घूम पड़ा। उसने देखा कि एक 8 वर्ष का बालक उसे पुकार रहा है। आज कई दिन पर उस मुहल्ले में साईं दिखलाई पड़ा है। साईं वैरागी था,-माया नहीं, मोह नहीं। परन्तु कुछ दिनों से उसकी आदत पड़ गयी थी कि दोपहर को मोहन के घर जाना, अपने दो-तीन गन्दे गूदड़ यत्न से रख कर उन्हीं पर बैठ जाता और मोहन से बातें करता। जब कभी मोहन उसे ग़रीब और भिखमंगा जानकर माँ से अभिमान करके पिता की नजर बचाकर कुछ साग-रोटी लाकर दे देता, तब उस साईं के मुख पर पवित्र मैत्री के भावों का साम्राज्य हो जाता। गूदड़ साईं उस समय 10 बरस के बालक के समान अभिमान, सराहना और उलाहना के आदान-प्रदान के बाद उसे बड़े चाव से खा लेता; मोहन की दी हुई एक रोटी उसकी अक्षय-तृप्ति का कारण होती। एक दिन मोहन के पिता ने देख लिया। वह बहुत बिगड़े। वह थे कट्टर आर्यसमाजी, ‘ढोंगी फ़कीरों पर उनकी साधारण और स्वाभाविक चिढ़ थी।’ मोहन को डाँटा कि वह इन लोगों के साथ बातें न किया करे। साईं हँस पड़ा, चला गया। उसके बाद आज कई दिन पर साईं आया और वह जान-बूझकर उस बालक के मकान की ओर नहीं गया; परन्तु पढक़र लौटते हुए मोहन ने उसे देखकर पुकारा और वह लौट भी आया। ‘‘मोहन!’’ ‘‘तुम आजकल आते नहीं?’’ ‘‘तुम्हारे बाबा बिगड़ते थे।’’ ‘‘नहीं, तुम रोटी ले जाया करो।’’ ‘‘भूख नहीं लगती।’’ ‘‘अच्छा, कल ज़रूर आना; भूलना मत!’’ इतने में एक दूसरा लडक़ा साईं का गूदड़ खींचकर भागा। गूदड़ लेने के लिए साईं उस लड़के के पीछे दौड़ा। मोहन खड़ा देखता रहा, साईं आँखों से ओझल हो गया। चौराहे तक दौड़ते-दौड़ते साईं को ठोकर लगी, वह गिर पड़ा। सिर से ख़ून बहने लगा। खिझाने के लिए जो लडक़ा उसका गूदड़ लेकर भागा था, वह डर से ठिठका रहा। दूसरी ओर से मोहन के पिता ने उसे पकड़ लिया, दूसरे हाथ से साईं को पकड़ कर उठाया। नटखट लड़के के सर पर चपत पड़ने लगी; साईं उठकर खड़ा हो गया। ‘‘मत मारो, मत मारो, चोट आती होगी!’’ साईं ने कहा-और लड़के को छुड़ाने लगा! मोहन के पिता ने साईं से पूछा-‘‘तब चीथड़े के लिए दौड़ते क्यों थे?’’ सिर फटने पर भी जिसको रुलाई नहीं आयी थी, वह साईं लड़के को रोते देखकर रोने लगा। उसने कहा-‘‘बाबा, मेरे पास, दूसरी कौन वस्तु है, जिसे देकर इन ‘रामरूप’ भगवान को प्रसन्न करता!’’ ‘‘तो क्या तुम इसीलिए गूदड़ रखते हो?’’ ‘‘इस चीथड़े को लेकर भागते हैं भगवान् और मैं उनसे लड़कर छीन लेता हूँ; रखता हूँ फिर उन्हीं से छिनवाने के लिए, उनके मनोविनोद के लिए। सोने का खिलौना तो उचक्के भी छीनते हैं, पर चीथड़ों पर भगवान् ही दया करते हैं!’’ इतना कहकर बालक का मुँह पोंछते हुए मित्र के समान गलबाँही डाले हुए साईं चला गया। मोहन के पिता आश्चर्य से बोले-‘‘गूदड़ साईं! तुम निरे गूदड़ नहीं; गुदड़ी के लाल हो!!’’

Answered by aditirani299
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साई ओ साई!!" एक लड़के ने पुकारा साईं घूम पड़ा। उसने देखा कि एक 8 वर्ष का बालक उसे पुकार रहा है। आज कई दिन पर उस मुहल्ले में साई दिखलाई पड़ा है। साई वैरागी था, माया नहीं, मोह नहीं। परन्तु कुछ दिनों से उसकी आदत पड़ गयी थी कि दोपहर को मोहन के घर जाना, अपने दो-तीन गन्दे गूदड़ यत्न से रख कर उन्हीं पर बैठ जाता और मोहन से बातें करता। जब कभी मोहन उसे ग़रीब और भिखमंगा जानकर माँ से अभिमान करके पिता की नजर बचाकर कुछ साग-रोटी लाकर दे देता, तब उस साई के मुख पर पवित्र मैत्री के भावों का साम्राज्य हो जाता गुदड़ साई उस समय 10 बरस के बालक के समान अभिमान, सराहना और उलाहना के आदान-प्रदान के बाद उसे बड़े चाव से खा लेता; मोहन की दी हुई एक रोटी उसकी अक्षय तृप्ति का कारण होती। एक दिन मोहन के पिता ने देख लिया। वह बहुत बिगड़े वह चे कट्टर आर्यसमाजी, ढोंगी फकीरों पर उनकी साधारण और स्वाभाविक चिढ़ थी मोहन को डाँटा कि वह इन लोगों के साथ बातें न किया करे। साई हँस पड़ा, चला गया। उसके बाद आज कई दिन पर साईं आया और वह जान-बूझकर उस बालक के मकान की ओर नहीं गया परन्तु पढ़कर लौटते हुए मोहन ने उसे देखकर पुकारा और वह लौट भी आया । "मोहन!" "तुम आजकल आते नहीं?" "तुम्हारे बाबा बिगड़ते थे।" "नहीं, तुम रोटी ले जाया करो।" "भूख नहीं लगती।" "अच्छा, कल जरूर आना; भूलना मत! इतने में एक दूसरा लड़का साईं का गूदड़ खींचकर भागा गूदड़ लेने के लिए साई उस लड़के के पीछे दौड़ा। मोहन खड़ा देखता रहा, साई आँखों से ओझल हो गया चौराहे तक दौड़ते-दोड़ते साईं को ठोकर लगी, वह गिर पड़ा। सिर से खून बहने लगा। खिझाने के लिए जो लड़का उसका गूदड़ लेकर भागा था, वह डर से ठिठका रहा। दूसरी ओर से मोहन के पिता ने उसे पकड़ लिया, दूसरे हाथ से साईं को पकड़ कर उठाया। नटखट लडके के सर पर चपत पड़ने लगी; साई उठकर खड़ा हो गया "मत मारो, मत मारो, चोट आती होगी!" साई ने कहा और लड़के को छुड़ाने लगा। मोहन के पिता ने साई से पूछा तब चीथड़े के लिए दौड़ते क्यों थे? सिर फटने पर भी जिसको रुलाई नहीं आयी थी, वह साई लड़के को रोते देखकर रोने लगा। उसने कहा-बाबा, मेरे पास, दूसरी कौन वस्तु है, जिसे देकर इन रामरूप भगवान को प्रसन्न करता!" "तो क्या तुम इसीलिए गूदड़ रखते हो?" "इस चीथड़े को लेकर भागते है भगवान् और मैं उनसे लड़कर छीन लेता हूँ; रखता हूँ फिर उन्हीं से जिनवाने के लिए, उनके मनोविनोद के लिए सोने का खिलौना तो उचक्के भी छीनते हैं, पर चीथड़ों पर भगवान् ही दया करते हैं!" इतना कहकर बालक का मुँह पोछते हुए मित्र के समान गलबॉही डाले हुए साई चला गया। मोहन के पिता आश्चर्य से बोले "गूदड़ साई! तुम निरे गूदड़ नहीं गुदड़ी के लाल हो!!"

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