कहानी लेखन अॅफ सिह ओर सियार
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बहुत समय पहले की बात है। एक घने जंगल के बीचो-बीच बने एक गुफा में एक बहुत बलवान शेर रहा करता था। वो हर दिन शिकार पर निकलता और अपनी भूख मिटाकर गुफा में वापस लौट आता था। एक दिन उसने एक भैंसे का शिकार किया। अब भैंसा तो काफी बड़ा होता है, शेर से जितना हो सका उसने खाया और बाकी वही छोड़ कर अपनी गुफा की तरफ निकल पड़ा। शेर जब भैंसे को चीड़-फाड़ कर खा रहा था तभी थोड़ी दूर बैठा एक मरियल सा सियार ये सब बड़े गौर से देख रहा था। जैसे ही शेर का खाना समाप्त हुआ सियार भी शेर के पीछे लग गया। जब शेर को एहसास हुआ की उसके पीछे कोई है तो उसने पलट कर देखा की सियार उसे दंडवत प्रणाम कर रहा है।
जब शेर ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने कहा, “हुजूर, कुपया मुझे आप अपनी शरण में ले लें। मैं आजीवन आपकी सेवा करुँगा और आपके द्वारा छोड़े गये शिकार से अपना गुजर-बसर कर लूंगा।”
शेर ने सियार की हालत देख उसकी बात मान ली और उसे दोस्त की तरह अपनी शरण में रख लिया।
अब शेर जब भी शिकार पर निकलता, सियार भी साथ हो लेता। कुछ ही महीनों में शेर द्वारा छोड़े गये शिकार को खा-खा कर वह काफी मोटा हो गया।
शेर के साथ रहते रहते और प्रतिदिन सिंह के साहस और पराक्रम को देख-देख सियार ने भी स्वयं को सिंह का प्रतिरुप मान लिया। घमंड में आकर उसने एक दिन सिंह से कहा, “अरे सिंह ! मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूँ। आज मैं एक हाथी का शिकार करुंगा और उसका भक्षण करुंगा और उसके बचे-खुचे माँस को तुम्हारे लिए छोड़ दूँगा।”
चूँकि सिंह उस सियार को दोस्त मानता था, इसलिए उसने उसकी बातों का बुरा न मान उसे ऐसा करने से रोका।
भ्रम-जाल में फँसा वह मुर्ख और घमंडी सियार सिंह के सलाह को ना मानते हुए पहाड़ की चोटी पर जा खड़ा हुआ। वहाँ से उसने चारों ओर नज़रें दौड़ाई तो पहाड़ के नीचे हाथियों के एक छोटे से झुण्ड को देखा। फिर सिंह-नाद की तरह तीन बार सियार की आवाजें लगा कर एक बड़े हाथी के ऊपर कूद पड़ा। किन्तु हाथी के सिर के ऊपर न गिर वह उसके पैरों पर जा गिरा और हाथी अपनी मस्तानी चाल से अपना अगला पैर उसके सिर के ऊपर रख आगे बढ़ गया। क्षण भर में सियार का सिर चकनाचूर हो गया और उसके प्राण पखेरु उड़ गये।
पहाड़ के ऊपर से सियार की सारी हरकतें देखता हुआ सिंह ने तब यह गाथा कही – “होते है जो मूर्ख और घमण्डी, होती है उनकी ऐसी ही गति।”
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