कहानी लेखन- बुद्वि ही श्रेष्ठ बल हैं
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किसी वन में हाथियों के झुंड के साथ उनका मुखिया चतुर्दन्त रहता था. एक बार बस वन में कई वर्षों तक वर्षा का अभाव रहा. पूरे वन में अकाल पड़ने लगा था. जिसकी वजह से छोटे-बड़े और कच्चे-पक्के सरोवर सूखने लगे. थोड़े ही समय में आसपास पानी का अभाव हो गया. इसके फलस्वरूप प्रतिदिन हाथी काल का ग्रास बनने लगे. ऐसी विकट स्तिथि में हाथियों ने अपने मुखिया चतुर्दन्त से अपनी व्यथा कतः कही और प्यास से मरते परिजनों के प्राणों की रक्षा के लिए जलाशय खोजने की प्रार्थना की. चतुर्दन्त ने अपने सम्मुख उपस्थित हाथियों को संबोधित करते हुए दुखी मन से कहा, ‘मैं आप लोगों के दुख को अच्छी प्रकार से समझ रहा हूं. आप लोग निशिंचत होकर जाइए. हम बहुत जल्दी कोई बड़ा-सा जलाशय खोजने के लिए अपने दूत भेजेंगे.’
अपने मुखिया के आश्वासन पर हाथी अपने-अपने घरों को चल दिए.
कुछ ही समय बाद चतुर्दन्त द्वारा इस कार्य के लिए नियुक्त हाथियों ने आकर बताया, ‘यहां से थोड़ी ही दुरी पर स्वच्छ जल से भरा एक सुंदर सरोवर है, जो पातालगंगा से निरंतर जल मिलते रहने के कारण सदा भरा रहता है. उसका जल कम होने का तो प्रशन ही उत्पन्न नहीं होता.’
यह सुनकर चतुर्दन्त ने कुछ अन्य हाथियों के साथ विचार-विमर्श किया और फिर अपने झुंड के अन्य हाथियों के साथ उसी समय उस सरोवर की ओर प्रस्थान किया.
साड़ी रात चलते रहने के पश्चात प्रातःकाल उन्हें वह सरोवर मिला. सभी हाथी उस जलाशय के स्वच्छ और गहरे जल को देखकर प्रसन्न हो उठे. उन्होनें जी भरकर स्नान किया और पेट भरकर जल पीकर अपनी प्यास बुझाई. दिनभर जलक्रीड़ा करने के उपरांत सभी हाथी शाम को ही बाहर निकले और अपने-अपने निवास की और चल पड़े.
जलाशय के चारों और मखमली घास भरी भूमि पर खरगोशों ने अपना निवास बना रखा था. हाथियों के स्वेच्छापूर्वक इधर-उधर घुमते रहने के कारण हाथियों के पैरों के नीचे आकर बहुत-से खरगोश मर गए, कुछ के हाथ-पैर टूट गए और उनके कई घर भी नष्ट हो गए.
हाथियों के झुंड के चले जाने के बाद बाकी बचे खरगोशों ने मिलकर एक सभा की. खरगोशों ने एक-दूसरे से कहा, ‘यदि इन हाथियों का इसी प्रकार यहां प्रतिदिन आना-जाना जारी रहता तो हम सब लोग शिग्र ही परलोक सिधार जाएंगे.’
‘ हमें इस स्थान को ही छोड़ देना चाहिए.’ एक खरगोश ने सुझाव दिया.
‘ अपने पुरखों के समय से चले आ रहे स्थान को अचानक छोडकर चले जाना उचित नहीं है. हमें हाथियों को डराने और फिर उनके यहां न आने का कोई उपाय सोचना चाहिए.’ उस खरगोस के कथन को सर्वथा अनुचित बताते हुए बाकी खरगोशों ने स्वर में कहा.
अपने जाति बंधुओ की चिंता से दुखी एक वृद्ध और बुद्धिमान खरगोस बोला, ‘हाथियों को यहां से भगाने का एक उपाय है. हमारा राजा विजयदत चंद्रमा के मंडल में निवास करता है. हमारा कोई एक बुद्धिमान साथी खरगोस चंद्रमा का दूत बनकर हाथियों के झुंड के स्वामी के पास जाकर उसे चन्द्रमा का संदेश दे कि इस सरोवर के चारों और उसके कुटुम्बियों का निवास है. इसलिए हाथियों के पैरों से उनके कुचले जाने की आशंका है. अतः चन्द्रमा उन्हें यह आदेश देता है की वह इस सरोवर के आसपास न आएं-जाएं. आज्ञा को न मानने का परिणाम भयंकर हो सकता है.’
सभा में उपस्थित खरगोशों को यह सुझाव काफी पसंद आया और इस काम के लिए लंबकर्ण नामक खरगोश को दूत बनाकर भेजने का निश्चय किया गया. लंबकर्ण कासी चतुर और बुद्धिमान था.
सांयकाल होते ही लंबकर्ण हाथियों के निवास के समीप पहुंचकर एक उंचे टीले पर चढ़ गया और उंचे स्वर मैं कहने लगा, ‘हाथियों! तुम्हारा मुखिया कहां है? उसे शीघ्र मेरे सामने उपस्थित करो.’
लंबकर्ण की कर्कश आवाज से हाथियों में खलबली और दहशत फैलने लगी. तभी चतुर्दन्त भी वहां आ पहुंचा और बोला, ‘कहो! कौन हो तुम, एन हाथियों का मुखिया मैं हूं.’
‘ अच्छा तो तुम हो इनके मुखिया. देखो,जिस सरोवर पर तुम्हारे हाथियों ने आज दिनभर उपद्रव मचाया है, कल से तुम उस सरोवर का आसपास भी नहीं जाओगे. अपने साथियों को अच्छी तरह से समझा दो वरना तुम्हारे जाति बंधुओं का विनास हो जाएगा.’ लंबकर्ण ने निडर होकर कहा.
‘ तुम कौन हो, अपना परिचय दो?’ चतुर्दन्त ने लंबकर्ण से कहा.
‘ तुम मुझे नहीं जानते. मैं चंद्रमंडल का निवासी हूं और चंद्रमा का आदेश सुनाने के लिए तुम्हारे पास भेजा गया हूं. भगवान चन्द्रदेव अपने जाति-बंधुओं के विनास से दुखी होकर, अपने परिजनों को सांत्वना और आश्वासन देने के लिए सरोवर में आए हुए हैं, अगर विशवास नहीं हो रहा तो चलकर स्वयं देख लो.’ लंबकर्ण कडकती आवाज में कह रहा था.
हाथियों के मुखिया चतुर्दन्त की उत्सुकता पर लंबकर्ण उसे अपने साथ ले गया और सरोवर के किनारे खड़ा होकर चतुर्दन्त से बोला, ‘ गौर से देखो. भगवान चंद्रमा क्रोध से किस प्रकार कांप रहे हैं.’
चतुर्दन्त ने वायुवेग से पानी में हिलते चन्द्रमा को देखा तो डरकर बोला, ‘ भगवान! क्षमा करें! कल से हम इधर नहीं आएंगे और आपकी आज्ञा का पालन करेंगें.’
लंबकर्ण अपने उद्देश्य में सफल लौटा और अपने साथी खरगोशों का सारा वृतांत कह सुनाया. इसके उपरांत वह निशिंचतता का जीवन व्यतीत करने लगे.