Hindi, asked by manghnani20gmailcom, 2 months ago

कहानी लेखन - झूठ का दान​

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Answered by Bhawnadhanik29112000
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Answer:

Explanation:

करीब 900 साल पुरानी बात है। ईरान में एक छोटा सा गांव था ‘जीलान’। वहां सैयद अब्दुल कादिर नामक एक लड़का रहता था। उसके पिता बचपन में ही गुजर गए थे। माँ ने ही उसका पालन पोषण किया।

कादिर की बड़ी इच्छा थी कि वह खूब पढ़े लिखे और विद्वान बने। चूंकि जीलान एक छोटी जगह थी इसलिए वहां पढ़ाई के अच्छे साधन उपलब्ध नही थे।

एक दिन उसने माँ से कहा- ‘माँ, मैं बगदाद पढ़ने जाऊंगा।’ यह सुनकर माँ का कलेजा भर आया। एक तो उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। ऊपर से कादिर उनका एकलौता सहारा था।

माँ उसे बगदाद भेजने को बिल्कुल तैयार नहीं थी। लेकिन कादिर पर तो पढ़ाई की धुन सवार थी। उसने जिद पकड़ ली। आखिरकार माँ को मानना ही पड़ा। उस समय यातायात के साधन इतने सुलभ नहीं थे।

केवल व्यापारी ही ऊँट, खच्चरों पर माल लादकर लम्बी यात्राएँ करते थे। ऐसे ही एक व्यापारियों के दल के साथ कादिर भी जाने को तैयार हो गया। जाते समय कादिर की माँ ने उसकी फतुही के भीतर चालीस अशर्फियाँ टाँक दीं।

माँ ने कादिर से कहा- ‘बेटा, तेरे अब्बा इतनी ही दौलत छोड़ गए हैं। इसे बड़ी सावधानी से खर्च करना। चाहे जैसी भी परिस्थिति हो,हमेशा सच ही बोलना। सच बोलने का परिणाम कभी बुरा नहीं होता। अल्लाह बड़ा दयालु है। वह तुझे बचायेगा।

कादिर ने माँ की बात गाँठ बाँध ली और सफर पर निकल पड़ा। सफर लम्बा था। रास्ते में एक दिन डाकुओं ने काफिले पर हमला कर दिया। व्यापारियों का सारा माल डाकुओं ने लूट लिया। कादिर फ़टे पुराने कपड़े पहने था। डाकुओं ने सोचा कि इसके पास क्या होगा।

व्यापारियों को लूटकर वे जाने ही वाले थे कि एक डाकू ने कादिर से भी पूछ लिया- ‘क्यों बे लड़के, तेरे पास भी कुछ माल है?’ कादिर ने जवाब दिया- ‘जी हाँ ! मेरे पास चालीस अशर्फियाँ हैं।’

डाकुओं को लगा कि लड़का मजाक कर रहा है। उन्होंने डाँटा- ‘बदमाश ! हमसे मजाक करता है?’ ‘जी नहीं’- ऐसा कहकर कादिर ने अपनी फतुही उतारकर उसमें से चालीस अशर्फियाँ निकालकर डाकुओं के सामने रख दीं।

सरदार ने पूछा- ‘लड़के, तू तो जानता है कि हम डाकू हैं। हम तेरी अशर्फियाँ छीन लेंगे। फिर भी तूने हमसे झूठ क्यों नहीं बोला?’

कादिर बोला- ‘ बात यह है सरदारजी! मुझे मेरी अम्मीजान ने कहा है कि चाहे जितनी मुसीबत आये । कभी झूठ मत बोलना। क्योंकि सच बोलने का परिणाम कभी बुरा नहीं होता। अल्लाह बड़ा मेहरबान है। वह अशर्फियाँ न रहने पर भी मुझ पर रहम करेगा।’

डाकू सन्न रह गये। इतना ईमानदार बच्चा ! इतना नेक और शरीफ! एक यह है और एक हम हैं, जो बेगुनाहों को सताते हैं। डाकुओं को अपने कारनामे पर बहुत पछतावा हुआ।

डाकुओं ने कादिर की अशर्फियाँ और व्यापारियों का सारा माल वापस लौटा दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने सदा के लिए डाका डालना भी छोड़ दिया।

ये सच्चाई की ताकत है। छोटे से बालक ने सिखा दिया कि सच बोलने का परिणाम अच्छा ही होता है। यह मोरल स्टोरी- सच बोलने का परिणाम एक बहुत पुरानी कहावत को भी चरितार्थ करती है की सत्य परेशान हो सकता है, किन्तु पराजित नहीं।

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