Hindi, asked by priyanka970, 10 months ago

कहानी लेखन maan को हारहार है मन को जीते जीत

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Answered by uravashibhagat94
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बहुत समय पहले एक व्यापारी ने बढ़िया नस्ल का एक घोड़ा खरीदा। उसे लेकर वह अपने घर पहुँचा और अपने पंडित मित्र को उसे देखने के लिए बुलाया। वह बोला- घोड़ा तो अच्छी नस्ल का है, लेकिन इसकी लगाम कभी ढीली मत छोड़ना। वरना कई बार सहूलियत की चीजें नुकसानभी पहुँचा देती हैं।

व्यापारी बोला- तू चिंता मत कर। मैं ऐसा ही करूँगा। इसके बाद वह व्यापारी व्यापार के काम में घोड़े का भरपूर उपयोग करने लगा। एक बार पंडित किसी यजमान के यहाँ जाने के लिए घर से तेजी से निकला कि सामने से उसे व्यापारी दोस्त घोड़े सेचिपककर बैठा हुआ दिखाई दिया।

घोड़ा सरपट भागता हुआ आ रहा था। पंडित ने सोचा कि इसे कहीं जल्दी पहुँचना होगा। यदि यह मुझे भी साथ ले ले तो अच्छा रहेगा। मैं भी समय रहते पहुँच जाऊँगा। उसने व्यापारी को पुकारा- बंधु, इतनी तेजी से कहाँ जा रहे हो? इस पर वह बिना रुके बोला- यह मुझे नहीं, घोड़े को पता है। मुझे जिस ओर जाना था, यह उसके विपरीत दिशा में ले जा रहा है। पंडित को कुछ समझ में नहीं आया।

बहुत समय पहले एक व्यापारी ने बढ़िया नस्ल का एक घोड़ा खरीदा। उसे लेकर वह अपने घर पहुँचा और अपने पंडित मित्र को उसे देखने के लिए बुलाया। वह बोला- घोड़ा तो अच्छी नस्ल का है, लेकिन इसकी लगाम कभी ढीली मत छोड़ना।

वह सोच ही रहा था कि थोड़ा आगे जाकर घोड़ा तेजी से उछला जिससे व्यापारी पास के एक पोखर में जा गिरा, लेकिन उसका पाँव रकाब में ही उलझा रह गया, जिसे उसने जैसे-तैसे छुड़ाया। पंडित ने उसके पास पहुँचकर उसे पोखर में से निकाला। व्यापारी पूरी तरह से कीचड़ में लथपथ हो चुका था। उसने बताया कि रंगपंचमी के जुलूस को देखकर घोड़ा बिदक गया, जिसकी वजह से उसकी यह दशा हुई। पंडित बोला- मैंने तो पहले ही तुझे कहा था कि हमेशा लगाम को कस कर रखना। खैर, छोड़। चल घर चलते हैं।

दोस्तो, यही हालत होती है घोड़े को अपने वश में न रखने वाले की। कहीं का कहीं पहुँचाता है और अंततः कीचड़ में ले जाकर गिरा देता है। यहाँ हम वास्तविक घोड़ों की नहीं, मन के घोड़ों की बात कर रहे हैं, जो वास्तविक घोड़ों से भी कई गुना ज्यादा सरपट दौड़ते हैं। और क्यों न दौड़ें।

जब इन्हें बेलगाम छोड़ देंगे तो जहाँ मर्जी आएगी, जब मर्जी आएगी, दौड़ जाएँगे। यही कारण है कि कई बार हम सोचते हैं कि हम कोई गलत काम नहीं करेंगे या कोई लत नहीं पालेंगे। लेकिन हम सिर्फ सोचते रह जाते हैं और मन के घोड़े हमें उन्हीं द्वारों पर छोड़ आते हैं, जहाँ से हम भागना चाहते थे।

इसलिए सबसे पहले हमें अपने मन की लगाम खींच कर रखना होगी, तभी हम वह सब कर पाएँगे, जो सोच रहे हैं। विवेकी और धैर्यवान लोगों के लिए यह काम आसान होता है, क्योंकि उनका मन उनके वश में होता है। लेकिन अविवेकी और असंयमी लोग चाहकर भी मन के घोड़ों को नियंत्रित नहीं कर पाते। वे मन में उठते निरर्थक भावों को दबा नहीं पाते।

यदि आप भी ऐसे ही हैं, जो सोचते हैं कि मन को दबाना या वश में करना असंभव है, तो आप गलत हैं। यह असंभव नहीं, लेकिन कठिन जरूर है। और यदि आपने इस कठिनाई को पार कर लिया, यानी मन को जीत लिया तो फिर जीत आपकी है। वो कहते हैं न कि 'मन के हारेहार है, मन के जीते जीत।' यानी कह सकते हैं कि यदि आप जीवन की चुनौतियों का सामना कर सफल लोगों में शुमार होना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले अपने मन को जीतना होगा। इसके लिए आपको निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होगी।

और अंत में, आज रंगपंचमी है। यह त्योहार इस भाव से मनाया जाता है कि आप पर होली के दिन जो रंग चढ़ा था, यदि वह किसी कारण से भी फीका पड़ गया है तो उसे फिर चढ़ा लिया जाए।

यानी मुद्दे की बात करें तो प्रेम, उत्साह, उमंग व संस्कारों का जो रंग हमने अपने ऊपर चढ़ाया था, यदि मन की चंचलता की वजह से उसमें कहीं भी कमी नजर आ रही हो, तो रंगपंचमी मनाकर एक बार पुनः उसे इन्द्रधनुषी आकार दे दें।

वैसे हम तो कहेंगे कि यदि आप गुरुमंत्र के नियमित पाठक हैं तो फिर आप एक तरह से रोज ही रंगपंचमी मनाते हैं, क्योंकि हम तो सद्गुणों, संस्कारों रूपी विविध रंगों की रोज ही बातें करते हैं। आप उन्हें पढ़ते, समझते और अपने मन में समाहित करते रहते हैं, आत्मसात करते हैं, ताकि जीवन में सफलता कागहरा और स्थायी रंग चढ़ सके।

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