कहानी - सेठ की चतुराई
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किसी राज्य का राजा थोड़ा सनकी था। राजकाज वह बेहतर ढंग से चलाता था, किंतु कभी-कभी अपनी विचित्र इच्छाओं और आदेशों से अपने आस-पास लोगों के सामने मुसीबत खड़ी कर देता था।
seth ki kahani
मंत्री, सेनापति, परिजन आदि के साथ कई बार प्रजा भी राजा की सनक का शिकार होती थी। राजा की कही गई बात पूरी न होती तो वह दंड देने से भी नहीं चूकता था। एक दिन राजा के बुलाने पर नगर सेठ डरता हुआ राजदरबार में आया.
सेठ की चतुराई । seth ki kahani
कि पता नहीं कौन -सा अजीब आदेश मिलेगा। राजा ने बड़े स्नेह से उसे विशेष आसन पर बैठाया कुछ देर व्यापार-व्यवसाय संबंधी बातचीत की। फिर एक सेवक को कहा, आज जो सौ बोरियां भंडारगृह में रखी हैं,
उनमें से एक बोरी लेकर आओ।’ सेवक ने बोरी लाकर रख दी। राजा ने उसे खुलवाया। उसमें गेहूं थे। राजा ने नगर सेठ से पूछा, यह क्या चीज है?’ नगर सेठ को अचरज हुआ कि स्पष्ट रूप से गेहूं दिखाई दे रहे हैं,
फिर राजा उससे यह व्यर्थ प्रश्न क्यों पूछ रहा है? वह ‘गेहूं’ कहने ही वाला था कि उसे राजा का सनकी स्वभाव याद आया। उसने सोचा कि ऐसा न हो कि गेहूं कहने से राजा नाराज हो जाए और कहे कि क्या मैं इतना मूर्ख हूं कि गेहूं भी न पहचान सकूं।
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इसलिए नगर सेठ ने राजा से जवाब देने के लिए तीन दिन का समय मांगा, जो राजा ने उसे दे दिया। काफी सोच-विचार के बाद वह चौथे दिन एक थैले में गेहूं लेकर राजा के पास पहुंचा और राजा के समक्ष उन्हें दिखाते हुए.
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बोला, ‘महाराज! जो यह हैं, वे भी यही हैं।’ राजा उसकी बुद्धिमानी देखकर प्रसन्न हुआ और उसे पुरस्कार देकर विदा किया। हमारे जीवन में भी अनेक अवसरों पर ज्ञान का सीधे-सीधे उपयोग न करते हुए चतुराई से काम लेना श्रेयस्कर होता है।
वस्तुत: व्यावहारिक जीवन में सफलता के लिए यह जरूरी है।