कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के।।
सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली।।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही।।
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।। ka aarth
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कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के।।
अर्थ ⦂ लक्ष्मण कहते हैं कि हे मुनि श्रेष्ठ! आपके आचरण को कौन नहीं जानता। आपका आचरण तो सारे संसार में प्रसिद्ध है। आप माता पिता के ऋण से भली-भांति मुक्त हो चुके हैं। आप पर बस अपने गुरु का ऋण ही रह गया है, जिसके कारण आपके मन पर बहुत बड़ा बोझ है और आपको उसकी चिंता सता रही है।
सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली।।
अर्थ ⦂ लक्ष्मण कहते हैं कि वह ऋण मानो हमारे माथे ही मढ़ना था। उस ऋण को बहुत दिन बीत गए। अब इसमें ब्याज भी बहुत चढ़ गया होगा। यदि किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुलाना हो, तो बुला लाइए मैं तुरंत अपनी थैली खोलकर उधार चुकता कर देता हूँ।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही।।
अर्थ ⦂ लक्ष्मण के तीखे एवं कड़वे वचन सुनकर परशुराम ने अपना फरसा उठा लिया।उनको ऐसा करते देख सारी सभा घबराकर हाय-हाय करने लगी। तब लक्ष्मण ने कहा, हे रघुश्रेष्ठ! आप मुझे फरसा दिखाकर व्यर्थ ही डरा रहे हैं। हे राजाओं के शत्रु, मैं आपको ब्राह्मण समझ कर बचा रहा हूं और आपसे कुछ नहीं कह रहा।
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
अर्थ ⦂ लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं कि एक दूसरे से आप मुझे अपना फरसा दिखाकर भयभीत करने की कोशिश कर रहे हैं। मैं तो आपको ब्राह्मण समझ कर आपका सम्मान कर रहा हूँ। आपका लगता है किसी वीर-बलवान से पाला नहीं पड़ा है। आप जैसा ब्राह्मण देवता अपने घर में ही श्रेष्ठ हैं। लक्ष्मण की ये बातें सुनकर सब सभा में उनकी आलोचना करने लगे। तभी श्रीराम ने लक्ष्मण को ज्यादा न बोलने का इशारा किया।
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
अर्थ ⦂ लक्ष्मण के क्रोधित स्वर में परशुराम से बोले कि आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं और मैं आपको ब्राह्मण समझकर लिहाज कर रहा हूँ। आपका शायद अभी तक वीरों से नहीं हुआ है, इसीलिए आप ऐसा कर रहे हैं। लक्ष्मण के आहुति के समान प्रचंड वचनों को परशुराम की क्रोध रूपी अग्नि की ओर बढ़ते देखकर रघुकुलनंदन श्री राम जल के समान शीतल एवं शांत भाव वाले वचनों को अपनाकर बोले।
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