Kahan hai Prabhu kahan Kabir guru gyan the ek yaad uprant Hindi mein iska arth
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संपूर्ण कबीर के दोहे अर्थ सहित हिंदी में। Kabir ke dohe in hindi
संत कबीर का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था परंतु फिर भी उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को मिटाने के लिए जीवन के अंतिम क्षणों तक प्रयत्न किया। संत कबीर समाज में फैले आडंबर और अंधविश्वास को मिटाने के लिए दोहे और पद की रचना करते थे जिनका सीधा उद्देश्य कुरीतियों पर वार करना था।
उनके दोहे और साथिया आज के युग में भी समान तरीके से लाभदायक है। क्योंकि आज भी समाज में बहुत से आडंबर और अंधविश्वास फैले हैं जिन्हें मिटाना बहुत जरूरी है। आपको हमारे लिखे गए इस लेख में ना सिर्फ कबीर के दोहे और साखियां पढ़ने को मिलेंगे बल्कि उनकी संपूर्ण व्याख्या भी प्राप्त होगी।
कबीर के दोहे व्याख्या सहित
यह सभी दोहे क्रमवार लिखे गए है और प्रत्येक दोहे और पद के नीचे आपको निहित शब्द और व्याख्या पढ़ने को मिलेंगे।
पहला दोहा
पाहन पूजे हरि मिले , तो मैं पूजूं पहार
याते चाकी भली जो पीस खाए संसार। ।
निहित शब्द – पाहन – पत्थर , हरि – भगवान , पहार – पहाड़ , चाकी – अन्न पीसने वाली चक्की।
व्याख्या –
कबीरदास का स्पष्ट मत है कि व्यर्थ के कर्मकांड ना किए जाएं। ईश्वर अपने हृदय में वास करते हैं लोगों को अपने हृदय में हरि को ढूंढना चाहिए , ना की विभिन्न प्रकार के आडंबर और कर्मकांड करके हरि को ढूंढना चाहिए। हिंदू लोगों के कर्मकांड पर विशेष प्रहार करते हैं और उनके मूर्ति पूजन पर अपने स्वर को मुखरित करते हैं। उनका कहना है कि पाहन अर्थात पत्थर को पूजने से यदि हरी मिलते हैं , यदि हिंदू लोगों को एक छोटे से पत्थर में प्रभु का वास मिलता है , उनका रूप दिखता है तो क्यों ना मैं पहाड़ को पूजूँ।