कहने को चाहे भारत में स्वशासन हो और भारतीयकरण का नारा हो, किंतु वास्तविकता में सब ओर आस्थाहीनता बढ़ती जा रही है। मंदिरों, मसजिदों, गुरुद्वारों या चर्च में बढ़ती भीड़ और प्रचार माध्यमों द्वारा मेलों और पर्वों के व्यापक कवरेज से आस्था के संदर्भ में कोई भ्रम मत पालिए; क्योंकि यह सब उसी प्रकार भ्रामक है, जैसे 'लगे रहो मुन्ना भाई की गांधीगिरी'।
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वास्तविक जीवन में जिस आचरण की अपेक्षा व्यक्ति या समूह से की जाती है, उसकी झलक तक पाना मुश्किल हो गया है। गांधी को 'गिरी' के रूप में आँकने के सिनेमाई कथानक का कोई स्थायी प्रभाव हो भी नहीं सकता। फ़िल्म उतरी और प्रभाव चला गया। गांधी को बाह्य आवरण से समझने के कारण वर्षों से हम दो अक्तूबर और तीस जनवरी को कुछ आडंबर अवश्य करते चले आ रहे हैं, लेकिन जिन जीवन-मूल्यों के प्रति आस्थावान होने की हम सौगंध खाते हैं और उन्हें आचरण में उतारने का संकल्प व्यक्त करते हैं, उसका लेशमात्र प्रभाव भी हमारे आसपास के जीवन में प्रतीत नहीं होता।
(क) लेखक ने 'मुन्ना भाई की गांधीगिरी' की तुलना किससे की है? (i) मंदिर-मसजिद-गुरुद्वारों में बढ़ती भीड़ से (ii) प्रचार माध्यमों के व्यापक कवरेज से
(iii) आस्थाहीनता से (iv) भारतीयकरण से (ख) मंदिर-मसजिद-गुरुद्वारों में बढ़ती भीड़ के बावजूद लेखक ने लोगों को आस्थाहीन क्यों कहा है?
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(i) वे इन पवित्र स्थानों पर कुछ पाने की लालसा लेकर जाते हैं (i) जो ज्यादा पाप करता है वही मंदिर-मसजिद-गुरुद्वारा जाता है (i) आस्थावान व्यक्ति के लिए तो प्रत्येक स्थान पर ईश्वर है, उसे मंदिर-मसजिद जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती
(iv) इनमें से कोई नहीं (ग) 'फिल्म उतरी और प्रभाव चला गया' लेखक किस फ़िल्म की बात कर रहे हैं?
(i) प्रत्येक फिल्म की (ii) जो फ़िल्में नहीं चल पातीं उनकी (iv) इनमें से कोई नहीं
(ii) लगे रहो मुन्ना भाई घ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किस पर व्यंग्य किया है?
(i) 'मुन्ना भाई की गांधीगिरी पर'
(ii) दो अक्तूबर एवं तीस जनवरी के दिन गांधी जी के प्रति झूठी आस्था दिखानेवालों पर (iii) गांधी जी के अनुयायियों पर (iv) गांधी जी पर
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