Hindi, asked by rawatpriyankad17, 1 day ago

कहनी पूर्ण कीजिए
रामपुर नामक गांव लकड़हारा करते समय कुल्हाड़ी का नदी मे गिरना नदी का गहरा होना
कुल्हाडे न मिलना का प्रार्थना न करना परीसा साना सोने तप्पा यादी की कुल्हाड़ी केना लेने से मना​

Answers

Answered by shahvaibhavi497
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Answer:

ईमानदार लकड़हारा (honest woodcutter)

बहुत समय की बात है। एक गांव में एक लकड़हारा रहता था। वह बहुत ही गरीब था। वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए जंगल में जाकर लकड़ियां काटकर बाजार में बेच देता था। और उस लकड़ी के बदौलत जो धन से मिलता था उससे वह अपना और अपने परिवार का जीवन यापन करता था। एक दिन वह जंगल में लकड़ी काटने गया। वह एक नदी के पास एक पेड़ पर चढ़ गया और लकड़ियां काटने लग गया। अचानक लकड़ी काटते हुए उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। लकड़हारा पेड़ से नीचे उतरा और सिर पर हाथ रख कर रोने लग गया। क्योंकि नदी बहुत गहरा था जिससे वह उसमें जाकर अपना कुल्हारी ढूंढने में असमर्थ था। उसे अपने घर परिवार की बहुत चिंता हुई। वह सोचने लगा कि अब हमारे परिवार का भरण पोषण किस प्रकार होगा। क्योंकि यही एकमात्र साधन था हमारे जीवन यापन का। वह बहुत ही करुण हृदय से भगवान से प्रार्थना करने लग गया।" हे भगवान! मुझे मेरी कुल्हाड़ी कुल्हाड़ी वापस दे दो। उस लकड़हारे की करुण भावना और सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना से ही भगवान अति प्रसन्न हुए। और भगवान उस लकड़हारे के सामने प्रकट हो गए और बोले" पुत्र! क्या परेशानी है तुम्हें? लकड़हारा हाथ जोड़कर बोला" भगवन! लकड़ी काटते समय हमारी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है। यह सुनकर भगवान ने अपना हाथ पानी में डाला और एक सोने की कुल्हाड़ी निकाली। और बोले" पुत्र !क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है? लकड़हारा बोला "भगवान! यह तो सोने की कुल्हाड़ी इससे लकड़ी काटना संभव नहीं है, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है, मेरी कुल्हाड़ी लोहे की है। भगवान ने फिर से नदी में हाथ डाला और इस बार एक चांदी की कुल्हाड़ी निकाली और बोले" पुत्र! क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है? लकड़हारा हाथ जोड़कर बोला" प्रभु! यह तो चांदी की कुल्हाड़ी है, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है, मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की है। यह सुनकर भगवान ने नदी में पुनः हाथ डाला और एक लोहे की कुल्हाड़ी के साथ प्रकट हुए और बोले" पुत्र! क्या यह है तुम्हारी कुल्हाड़ी? लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी देखते ही पहचान लिया और उसकी आंखें भर आई देखते ही लकड़हारा बोला "हां प्रभु! यही है मेरी कुल्हाड़ी। भगवान उस लकड़हारे की ईमानदारी देखकर अति प्रसन्न हुए और उसने सोने ,चांदी और लोहे तीनों कुल्हाड़ी उस लकड़हारे को दे दी। वह लकड़हारा अति प्रसन्न हुआ और खुशी-खुशी अपने घर को आ गया। घर आकर उसने जंगल में हुए संपूर्ण कहानी को अपने बच्चों और परिवार को सुनाया जिसे सुनकर पूरा परिवार अत्यंत प्रसन्न हुआ।

निष्कर्ष (conclusion)

हमें यह कहानी पढ़ने के बाद यह निष्कर्ष देखने को मिलता है की हमें अपने जीवन में ईमानदारी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए भले ही जीवन में कितनी गरीबी क्यों ना हो परंतु ईमानदारी और भगवान की ऊपर विश्वास कभी नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि कोई और देखे या ना देखे परंतु परमपिता परमात्मा अपने सभी बच्चों का ध्यान रखते हैं और मुसीबत में उनकी मदद करने स्वयं पहुंचते हैं।

hope it's helpful.

drop some thanks users.

Answered by sangeetadevi3010
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Answer:

1.2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए। (Answer the following questions)

(क) लकड़हारे के परिवार में कौन-कौन था?

(ख) लकड़हारा अपने परिवार का भरण-पोषण किस प्रकार करता था?

(ग) लकड़हारा एवं उसकी पत्नी गुल्लक में इकट्ठे किए गए पैसे से क्या करना चाहते थे

(घ) राजा ने लकड़हारे को क्या देना चाहा ?

(ङ) लकड़हारे को ईमानदारी का क्या फल मिला?

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