Hindi, asked by shaheen15, 1 year ago

kahani jisme 10 muhaware ho

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Answered by Nishu05
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टेढ़ी खीर 

एक नवयुवक था. छोटे से क़स्बे का. अच्छे खाते-पीते घर का लेकिन सीधा-सादा और सरल सा. बहुत ही मिलनसार. 
एक दिन उसकी मुलाक़ात अपनी ही उम्र के एक नवयुवक से हुई. बात-बात में दोनों दोस्त हो गए. दोनों एक ही तरह के थे. सिर्फ़ दो अंतर थे, दोनों में. एक तो यह था कि दूसरा नवयुवक बहुत ही ग़रीब परिवार से था और अक्सर दोनों वक़्त की रोटी का इंतज़ाम भी मुश्किल से हो पाता था. दूसरा अंतर यह कि दूसरा जन्म से ही नेत्रहीन था. उसने कभी रोशनी देखी ही नहीं थी. वह दुनिया को अपनी तरह से टटोलता-पहचानता था.
लेकिन दोस्ती धीरे-धीरे गाढ़ी होती गई. अक्सर मेल मुलाक़ात होने लगी.
एक दिन नवयुवक ने अपने नेत्रहीन मित्र को अपने घर खाने का न्यौता दिया. दूसरे ने उसे ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार किया.
दोस्त पहली बार खाना खाने आ रहा था. अच्छे मेज़बान की तरह उसने कोई कसर नहीं छोड़ी. तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाए.
दोनों ने मिलकर खाना खाया. नेत्रहीन दोस्त को बहुत आनंद आ रहा था. एक तो वह अपने जीवन में पहली बार इतने स्वादिष्ट भोजन का स्वाद ले रहा था. दूसरा कई ऐसी चीज़ें थीं जो उसने अपने जीवन में इससे पहले कभी नहीं खाईं थीं. इसमें खीर भी शामिल थी. खीर खाते-खाते उसने पूछा, 

"मित्र, यह कौन सा व्यंजन है, बड़ा स्वादिष्ट लगता है."

मित्र ख़ुश हुआ. उसने उत्साह से बताया कि यह खीर है.

सवाल हुआ, "तो यह खीर कैसा दिखता है?"

"बिलकुल दूध की तरह ही. सफ़ेद."

जिसने कभी रोशनी न देखी हो वह सफ़ेद क्या जाने और काला क्या जाने. सो उसने पूछा, "सफ़ेद? वह कैसा होता है."

मित्र दुविधा में फँस गया. कैसे समझाया जाए कि सफ़ेद कैसा होता है. उसने तरह-तरह से समझाने का प्रयास किया लेकिन बात बनी नहीं.
आख़िर उसने कहा, "मित्र सफ़ेद बिलकुल वैसा ही होता है जैसा कि बगुला."

"और बगुला कैसा होता है."

यह एक और मुसीबत थी कि अब बगुला कैसा होता है यह किस तरह समझाया जाए. कई तरह की कोशिशों के बाद उसे तरक़ीब सूझी. उसने अपना हाथ आगे किया, उँगलियाँ को जोड़कर चोंच जैसा आकार बनाया और कलाई से हाथ को मोड़ लिया. फिर कोहनी से मोड़कर कहा, 

"लो छूकर देखो कैसा दिखता है बगुला."

दृष्टिहीन मित्र ने उत्सुकता में दोनों हाथ आगे बढ़ाए और अपने मित्र का हाथ छू-छूकर देखने लगा. हालांकि वह इस समय समझने की कोशिश कर रहा था कि बगुला कैसा होता है लेकिन मन में उत्सुकता यह थी कि खीर कैसी होती है.

जब हाथ अच्छी तरह टटोल लिया तो उसने थोड़ा चकित होते हुए कहा, "अरे बाबा, ये खीर तो बड़ी टेढ़ी चीज़ होती है."

वह फिर खीर का आनंद लेने लगा. लेकिन तब तक खीर ढेढ़ी हो चुकी थी. यानी किसी भी जटिल काम के लिए मुहावरा बन चुका था "टेढ़ी खीर."

I HOPE THIS ANSWER HELPS YOU MORE.................!! ☺️✌️

shaheen15: es mein total kitne muhavre hai
christhomas: 28 hai
Nishu05: is kahani me bohot Saare muhaware upasthit kiye gye hai!!
shaheen15: thank you so much dear
Nishu05: Wlcm :-)
shaheen15: yup baby
Answered by christhomas
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प्रेरक कहानी : रेल टिकट

राम और श्याम दो मित्र थे। किसी समय दोनों एक ही
स्कूल में पढ़ते थे। मगर दोनों की आर्थिक स्थिति में जमीन-आसमान का फर्क था। राम के पिता एक बड़े व्यापारी थे और उनकी बदौलत राम बिना कुछ किए ही मालामाल हो गया।

कहावत है कि पैसा ही पैसे को खींचता है। राम ने भी जब पिता का व्यवसाय सँभाला तो उसकी संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगी। वहीं दूसरी ओर श्याम के पिता अत्यंत गरीब थे। स्कूल से मिले वजीफे के सहारे श्याम ने जैसे-तैसे स्कूल की पढ़ाई पूरी की। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के लिए श्याम को आकाश-पाताल एक करना पड़ा। मदद माँगने पर सभी रिश्ते नातेदारों ने उसे अँगूठा दिखा दिया।

अंत में उसने ट्‍यूशन ‍लेने तथा अखबार बाँटने जैसा पार्टटाइम काम किया एवं इस तरह लोहे के चने चबाते हुए कॉलेज की फीस की व्यवस्था की एवं पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपनी धाक जमा दी।

राम भी पास होकर स्नातक हो गया और उसके घर में घी के दिये जलाए गए। मगर श्याम के घर ऊँट के मुँह में जीरे के बराबर तेल भी नहीं था। अत: उसने तेते पाँव पसारिये, जेती लांबी सौर वाली लोकोक्ति पर अमल करते हुए फिल्मी गीत पर डांस ही कर लिया। स्नातक होने के बाद श्याम ने नौकरी पाने के लिए दस जगह की खाक छानी। मगर कहीं भी उसकी दाल नहीं गली। अंतत: उसने बैंक से लोन लेकर एक पावरलूम मशीन डाल ली।

शुरू में इतनी कठिनाइयाँ आई मानो सिर मुँडाते ही ओले पड़ गए हों। मगर धीरे-धीरे उसका काम चल निकला जो लोग गरीबी के कारण उसकी नाक में दम किए रहते थे, उसे नीचा दिखाते रहते थे। उन्होंने भी उसकी काबिलियत का लोहा मान लिया।

राम का एक बेटा अमित था जो उसकी आँखों का तारा था। श्याम का भी एक बेटा सुमित था जो कि उसके कलेजे का टुकड़ा था। संयोग से दोनों मित्रों के ये पुत्र एक ही स्कूल में पढ़ते थे। उनकी मित्रता देखकर लोग दंग रह जाते थे कि कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली। मगर मित्रता अमीरी-गरीबी नहीं देखती।

एक दिनअमित के मामा का फोन आया। उन्होंने उसे घूमने के लिए शहर बुलाया था। अमित ने सुमित को भी अपने साथ चलने के लिए तैयार कर लिया। नियत दिन अमित के पिता राम अमित व सुमित को रेलवे स्टेशन छोड़ने आए। जिसके पास बिना मेहनत का ज्यादा पैसा होता है उसकी धन कमाने और बचाने की लालसा बढ़ती ही जाती है। अमित के पिता ने भी दोनों मित्रों को बिना टिकट रेल में बैठाकर समझाया कि किस तरह शहर पहुँचकर उन्हें स्टेशन के एक छोर ‍पर स्थित टूटी हुई ग्रिल के रास्ते से बाहर निकलना हैकि कट चेकर से बचा जा सके। अमित के पिता के जाते ही उसने अमित को खूब खरी-खोटी सुनाई।

उसे उसके पिता के दिए संस्कारों ने बिना टिकट यात्रा करने की अनुमति नहीं दी। दोनों मित्रों ने अगला कदम तय किया और भागकर टिकट खिड़की पहुँच गए। वहाँ यात्रियों की इतनी लंबी कतार लगी थी मानो कि एक अनार सौ बीमार जैसे-तैसे टिकट लेकर वे रेल में सवार हुए। थोड़ी ही देर बाद एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि बेटा मिठाई खाओगे। मिठाई देखकर सुमित के मुँह में पानी आ गया। उसने हाथ आगे बढ़ाया था कि अमित ने उसका हाथ खींच लिया। फिर धीरे से कानाफूसी करते हुए समझाया कि यात्रा में किसी भी अजनबी से लेकर कोई चीज खाना-पीना नहीं चाहिए।

ऐसे लोग बदमाश हो सकते हैं जो अपना जाल बिछाकर सहय‍ात्रियों को बेहोश करके लूट लेते हैं। ऐसे लोगों के मुँह में राम तथा बगल में छुरी होती है।

शहर पहुँचने के बाद दोनों मित्र स्टेशन के बाहर सिर उठाकर पूरी निडरता के साथ आए क्योंकि जेब में टिकट जो रखा था। बाद में इस घटना का पता चलने पर अमित के पिता शर्म से पानी-पानी हो गए। वहीं सुमित के पिता को उस पर बहुत गर्व हुआ। किसी ने ठीक ही कहा है कि साँच को आँच नहीं। अर्थात सच्चे मनुष्य को कोई हानि नहीं पहुँचा सकता।
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