Kahani lekhan on dridh sankalp the words are padhai , parisha, dhabba, roshan,sankalp and moral of the story
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प्रमोद नाम का एक विद्यार्थी था । वह पढ़ने में बहुत कमजोर था | उसके भाई बहन हमेशा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होते थे । पढ़ाई में कमजोर होने के कारण प्रमोद को हमेशा अपने भाई -बहन के आगे शर्मिंदा होना पड़ता था ।
आठवीं कक्षा में औसत अंक प्राप्त करके वह नौवीं कक्षा में आ तो गया किंतु इस वर्ष की परीक्षा में भी वह अनुत्तीर्ण हो गया । उसके भाई -बहन ने इस वर्ष फिर बाजी मारी और अपनी - अपनी कक्षा में प्रथम आकर माता - पिता का नाम रोशन किया । यह सब देखकर उसे लगा कि जैसे वह परिवार की कीर्ति -रूपी पताका में एक धब्बा है जो हमेशा असफल होकर स्वयं का तथा अपने परिवार का नाम रोशन करने की अपेक्षा बदनाम कर देता है ।
इस घटना से वह बहुत दुखी था । इसी समय उसकी बड़बोली चाची आ गई जो अक्सर गाहे-बगाहे उसे पढ़ाई को लेकर ताने मारती रहती थी। एक दिन अत्यंत मायूस और निराश होकर वह अपने गांव की नदी किनारे चला गया । नदी किनारे एक बरगद का पेड़ था ।वह उसके नीचे बैठ गया । सहसा उसने देखा कि एक नन्ही -मकड़ी पेड़ पर चढ़ने के लिए प्रयत्न कर रही थी पर बार-बार नीचे फिसल जाती थी | वह कई बार पेड़ पर चढ़ी और गिरी फिर भी उसने कोशिश जारी रखी | अंत में वह पेड़ की डाल पर पहुंच गई | मकड़ी की सफलता देखकर प्रमोद के मन में एक विचार आया कि यह नन्ही -सी मकड़ी यदि दृढ संकल्प और लगन से पेड़ पर चढ़ सकती है तो मैं भी कड़ी मेहनत करके इस वर्ष अच्छे अंको से पास हो सकता हूं । उसकी समूची निराशा गायब हो गई | मन में उत्साह का संचार हो गया और आशा की किरण फूट पड़ी | उसने दृढ़ संकल्प लिया कि मैं अपनी असफलता से कतई निराश नहीं होऊंगा अपितु दुगुनी लगन से खूब ध्यान लगाकर पढ़ाई करूंगा । उसके विचारों को दिशा मिल गई थी |वह तेजी से घर की ओर मुड़ चुका था । उस दिन से वह खूब ध्यान लगाकर पढ़ने लगा | नतीजतन उसे सुनहरी सफलता प्राप्त हुई |
सीख : इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को निराश नहीं होना चाहिए दृढ संकल्प और लगन से काम करते रहने पर सफलता अवश्य मिलती है ।