कहते हैं एक झूठ छुपाने के लिए 100 सूट बोलने पड़ते हैं कैसे अपने अनुभव के आधार पर 60-70 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखो
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एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं। यह कहावत शुक्रवार को जनजातीय संग्रहालय में मंचित नाटक ‘तिल का ताड़’ में सच होती दिखाई दी। दीपक किरार के निर्देशन में हुए इस नाटक का लेखन डॉ. शंकर शेष ने किया। नाटक का मुख्य किरदार प्राणनाथ है, जिसके एक झूठ के इर्द-गिर्द पूरी कहानी घूमती है, जहां से हास्य उत्पन्न होता है। प्राणनाथ शहर में नौकरी करता है और वहीं एक मकान में किराए से रहता है। उस मकान का मालिक है सेठ धन्नामल, जो कुंवारे लड़कों को कमरे किराये से नहीं देता है। कमरा पाने की जुगत में प्राणनाथ झूठ बोल देता है कि वो शादीशुदा है। नाटक में आने वाली परिस्थितियां हास्य पैदा करती हैं।
इस तरह शुरू हुआ हास्य
एक दिन धन्नामल प्राणनाथ को धमकी देता है कि वह अपनी प|ी को लेकर आए, वरना उसका सामान घर के बाहर फेंक दिया जाएगा। इस बात से परेशान प्राणनाथ औरत की खोज में लग जाता है। वह अपने दोस्तों से भी मदद मांगता है। इसी बीच मुसीबत में फंसी हुई एक लड़की मंजू देवी उसके घर आ पहुंचती है, जिसे कुछ गुंडे छेड़ रहे होते हैं। प्राणनाथ उसे बचाता है और अपने घर में प|ी बनने का नाटक करने का प्रस्ताव देता है।
घबराहट में बोला सच
कोई चारा न होने के कारण मंजू देवी उसे स्वीकार कर लेती है। धन्नामल मंजू से प्राणनाथ के परिवार के बारे में पूछताछ करता है। घबराहट में मंजू बोल देती है कि प्राणनाथ का छोटा भाई इंजीनियर है। धन्नामल अपनी बेटी का रिश्ता उससे तय करने की सोचता है। वहीं एक अन्य मित्र ब्रह्मचारी लड़की और लड़के का बिना शादी के साथ में रहना अनैतिक समझता है। वह इन चीजों का ढिंढोरा पीटने की धमकी देता है। इन्हीं सब परिस्तिथयों के बीच मंजु देवी के पिता और प्राणनाथ के पिता का आना होता है और धन्नामल के साथ उनकी नोक-झोंक होती है। अंत में मंजू देवी सारे रहस्य से पर्दा उठाती है और समाज में स्त्रियों की स्थिति का वर्णन करती है।
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