Kaidi aur kokila full summary in hindi
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वि ने जेल के माहौल का बड़ा सटीक वर्णन किया है। जेल डाकू, चोरों जैसे खतरनाक अपराधियों का बसेरा होता है। जेल में भर पेट भोजन भी नसीब नहीं होता है। वहाँ ना जीने दिया जाता है और ना ही मरने दिया जाता है। जीवन की हर गतिविधि पर कड़ा पहरा लगा होता है। ऐसा लगता है जैसे शासन नहीं बल्कि अंधेरे का प्रभाव पड़ा हुआ है। रात इतनी बीत चुकी है कि अब चाँद भी निराश करके जा चुका है। ऐसे में कवि को आश्चर्य होता है कि कोयल जैसा निरीह प्राणि वहाँ क्या कर रहा है।
क्यों हूक पड़ी?
वेदना बोझ वाली सी
कोकिल बोलो तो
क्या लुटा?
मृदुल वैभव की रखवाली सी
कोकिल बोलो तो!
कवि को लगता है कि कोयल की आवाज में एक वेदना से भरी हूक उठ रही है। ऐसा लगता है कि कोयल का संसार लुट गया है। मनुष्य जिस मानसिक स्थिति में होता है उसी तरह के मतलब वह अपने परिवेश से भी निकालता है। यदि आप खुश हैं तो सुबह के सूरज की लाली आपको सुंदर लगेगी। दूसरी ओर, यदि आप दुखी हैं तो वही लाली आपको रक्तरंजित लगने लगेगी।
क्या हुई बावली?
अर्ध रात्रि को चीखी कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की ज्वालायें हैं दीखी?
कोकिल बोलो तो!
कवि को लगता है कि शायद कोयल ने आधी रात में जंगल की आग की भयावहता देख ली है इसलिए चीख रही है।
क्या? देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? ये ब्रिटिश राज का गहना।
कोल्हू का चर्रक चूं जीवन की तान।
गिट्टी पर अंगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली
इसलिए रात में गजब ढ़ा रही आली?
कैदी के जीवन पर जेल के असर का चित्रण यहाँ हुआ है। वहाँ पर बेड़ियाँ और हथकड़ियाँ ही कैदी का गहना बन जाती हैं। कोल्हू चलने से जो चर्र चूँ की आवाज आती है वही कैदी का जीवन गान बन जाती है। कोल्हू के डंडे पर कैदियों की अंगुलियों के निशान इस तरह पड़ गये हैं जैसे उस पर गाने उकेर दिये गये हों।
कवि को लगता है कि जुआ खींच कर वह अंग्रेजों की अकड़ का कुआँ साफ कर रहा है। दिन में शायद करुणा को जागने का समय नहीं मिल पाया होगा, इसलिए रात में वह कोयल के रूप में कैदियों का ढ़ाढ़स बंधाने आई है।
क्यों हूक पड़ी?
वेदना बोझ वाली सी
कोकिल बोलो तो
क्या लुटा?
मृदुल वैभव की रखवाली सी
कोकिल बोलो तो!
कवि को लगता है कि कोयल की आवाज में एक वेदना से भरी हूक उठ रही है। ऐसा लगता है कि कोयल का संसार लुट गया है। मनुष्य जिस मानसिक स्थिति में होता है उसी तरह के मतलब वह अपने परिवेश से भी निकालता है। यदि आप खुश हैं तो सुबह के सूरज की लाली आपको सुंदर लगेगी। दूसरी ओर, यदि आप दुखी हैं तो वही लाली आपको रक्तरंजित लगने लगेगी।
क्या हुई बावली?
अर्ध रात्रि को चीखी कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की ज्वालायें हैं दीखी?
कोकिल बोलो तो!
कवि को लगता है कि शायद कोयल ने आधी रात में जंगल की आग की भयावहता देख ली है इसलिए चीख रही है।
क्या? देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? ये ब्रिटिश राज का गहना।
कोल्हू का चर्रक चूं जीवन की तान।
गिट्टी पर अंगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली
इसलिए रात में गजब ढ़ा रही आली?
कैदी के जीवन पर जेल के असर का चित्रण यहाँ हुआ है। वहाँ पर बेड़ियाँ और हथकड़ियाँ ही कैदी का गहना बन जाती हैं। कोल्हू चलने से जो चर्र चूँ की आवाज आती है वही कैदी का जीवन गान बन जाती है। कोल्हू के डंडे पर कैदियों की अंगुलियों के निशान इस तरह पड़ गये हैं जैसे उस पर गाने उकेर दिये गये हों।
कवि को लगता है कि जुआ खींच कर वह अंग्रेजों की अकड़ का कुआँ साफ कर रहा है। दिन में शायद करुणा को जागने का समय नहीं मिल पाया होगा, इसलिए रात में वह कोयल के रूप में कैदियों का ढ़ाढ़स बंधाने आई है।
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कैदी और कोकिला माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखी गयी है ।
माखनलाल चतुर्वेदी बहुत बड़े देश प्रेमी थे , उन्होंने कविता के माध्यम से पराधीन भारत अथवा अंग्रेजो के नीचे चलने वाले भारत की जेलों की दुर्दशा का विवरण किया है ।
इस कविता के माध्यम से कवि लोगो में क्रांति करने का आह्वान कर रहा है । कारागृह में कवि देर रात को कोकिल की आवाज सुनकर आंदोलित हो उठता है । उसका मन जिज्ञासा एवं प्रश्नों से भर उठता है ।
वह जेल में चोर , डाकुओं, लुटेरो, राहमारो के साथ रहने के लिए विवश है । अंग्रेजी सरकार ने उन पर मन माने अत्याचार किये । कवि फिर भी निराश नहीं हुआ । जेल की यातनाओ को वो गौरव मानता है । हथकड़ियों को वो गहना मानता है ।
वह हर प्रकार की यातनाएँ सहने के बाद भी निडरता के साथ स्वतंत्रता संग्राम में अपनी जान तक देने के लिए तैयार है । कवि जागरूक लोगो में से एक है । उसका जज्बा अभी भी कायम है ।
★ AhseFurieux ★
माखनलाल चतुर्वेदी बहुत बड़े देश प्रेमी थे , उन्होंने कविता के माध्यम से पराधीन भारत अथवा अंग्रेजो के नीचे चलने वाले भारत की जेलों की दुर्दशा का विवरण किया है ।
इस कविता के माध्यम से कवि लोगो में क्रांति करने का आह्वान कर रहा है । कारागृह में कवि देर रात को कोकिल की आवाज सुनकर आंदोलित हो उठता है । उसका मन जिज्ञासा एवं प्रश्नों से भर उठता है ।
वह जेल में चोर , डाकुओं, लुटेरो, राहमारो के साथ रहने के लिए विवश है । अंग्रेजी सरकार ने उन पर मन माने अत्याचार किये । कवि फिर भी निराश नहीं हुआ । जेल की यातनाओ को वो गौरव मानता है । हथकड़ियों को वो गहना मानता है ।
वह हर प्रकार की यातनाएँ सहने के बाद भी निडरता के साथ स्वतंत्रता संग्राम में अपनी जान तक देने के लिए तैयार है । कवि जागरूक लोगो में से एक है । उसका जज्बा अभी भी कायम है ।
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