Kaise log jivan Ko safal nahi bana pate aur kyo
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एक बात पक्की है कि जो अपने मुताबिक जीवन जी रहा है वही सफल है.
अपने मुताबिक जीवन? क्यों जी आप अपने मुताबिक जीवन जी रहे हैं क्या?
समस्या यह है कि मन स्थिर नहीं है. परिणाम यह हो रहा है कि कोई काम वैसा नहीं बन पाता जिसकी कोशिश हम करते हैं. काम में सफलता की दर? किसी के लिए 5 प्रतिशत, किसी के लिए 10 प्रतिशत और बहुत ज्यादा हुआ तो 15-20 प्रतिशत. यह मैं जीवन में सफलता का रेशियो बता रहा हूं. दुर्भाग्यशाली वे हैं जो एक-दो प्रतिशत सफलता के साथ जी रहे हैं. ऐसे लोगों की संख्या बहुत है. जो 5-10 प्रतिशत सफल है वह औसत और जो 15-20 प्रतिशत सफल है वह हमारा आदर्श. ऐसे लोग सफल आदमी के तौर पर हमारे बीच स्थापित हो जाते हैं.
हम सोचते कुछ हैं होता कुछ है. क्या मैं-क्या आप. सबकी यही कहानी है. और असफल आदमी का व्यवहार कैसा होना चाहिए? वैसा ही होता है जैसा हममें से बहुतों का है. तनावग्रस्त, चिड़चिड़ा, हर समय नकारात्मक. सवाल यह है कि क्या आप ऐसा होना चाहते हैं. क्या आप वह दिखते हैं जो आप दिखना चाहते हैं? नहीं जी, कौन बुरा दिखना चाहता है. न आप, न मैं. लेकिन असफलता हमारे जीवन में कुछ ऐसी आ गयी है कि हम चाहकर भी वह नहीं रह पाते जो हम वास्तविक रूप में हैं. फिर लोग कहते हैं कि फलां आदमी तो ऐसा है, उसमें ये बुराई है, उसमें यह कमी है.
हम लोग पढ़े-लिखे लोग हैं इसलिए कर्म और प्रारब्ध को तो मानते नहीं है. पढ़ाई लिखाई भी दो प्रकार की होती है. एक होता है निकृष्ट ज्ञान और दूसरा होता है श्रेष्ठ ज्ञान. निकृष्ट ज्ञान की तो मैं बात ही नहीं करूंगा क्योंकि आज की शिक्षा व्यवस्था उसी आधार पर टिकी हुई है. लेकिन जो श्रेष्ठ ज्ञान है वह भी सत्य के मार्ग में एक सीमा के बाद बाधा बन जाता है. भगवान शिव कहते हैं – ज्ञान बंधः यानि ज्ञान बंधन है. ज्ञान के इस दर्शन में ही कर्म और प्रारब्ध का रहस्य छिपा हुआ है. जो हमारे न मानने से खारिज नहीं होता. उसका अस्तित्व है और हमारे जीवन पर उसका पूरा का पूरा प्रभाव रहता है.
हमारे कर्मों से हमारा प्रारब्ध बनता है और हमारे संचित प्रारब्ध कर्म रूप में हमें प्राप्त होते हैं. हम, आप कोई इससे मुक्त नहीं हो सकता. जो सफलता असफलता के चक्की में पिस रहे हैं उनको एक बात समझ लेनी चाहिए. सफलता, असफलता की परिभाषा हमारी बनाई हुई है. एक की सफलता दूसरे की असफलता हो सकती है. किसी के लिए 100 रूपये दिनभर में कमाना सफलता हो सकती है तो किसी और के लिए दिनभर में 100 रूपये कमाना भारी असफलता हो सकती है. इसका कोई मतलब नहीं है. यह सब निकृष्ट ज्ञान के बनाये हुए मोहपाश हैं.
सच्ची सफलता आपके अंदर छिपी है. उस सफलता को पाने के लिए किसी पूंजी-निवेश की जरूरत नहीं है. उसके लिए कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं बनाना है. हमारी सात्विकता ही पूंजी निवेश है और हमारी शुद्धता इन्फ्रास्ट्रक्चर है. सात्विकता और शुद्धता जितनी बढ़ती चली जाएगी हमारी सफलता उतनी पक्की. मैं कुछ बोलता हूं, या फिर लिखता हूं तो मुझे इस बात की चिंता नहीं होती कि यह कोई पढ़ता है या नहीं. मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि यह मेरा कर्म है और मैं इसे कर रहा हूं. जिस दिन यह चिंता हो जाएगी उस दिन मैं भी सफलता-असफलता के चक्रव्यूह में पड़ा मिलूंगा.
मेरी सफलता है कि क्या मैं अपने मुताबिक जीवन जी रहा हूं? अगर हां तो मैं सफल हूं. अगर नहीं तो प्राप्त कुछ भी हो जाए, आपकी नजर में मैं सफल हो सकता हूं लेकिन अपनी नजर में नहीं. मुझे अपनी नजर में सफल होना है. आजकल सफलता क्या है? आपके पास पैसा है, पैसे से खरीदी गयी वस्तुएं हैं और इन सबके बल पर चाटुकारों की फौज आपके आस-पास हो तो हम अपने आप को सफल मानते हैं. ऐसे बहुत से लोगों को मैं देखता हूं जिनके पास यह सब है फिर भी वे अपने आपको सफल नहीं मानते. जहां पहुंच गये वहां से आगे एक और सीढ़ी दिख जाती है.
इन चक्करों से बाहर निकलिए. यह अंतहीन सिलसिला है. कभी खत्म नहीं होगा. अपने मुताबिक जीवन जीने की कोशिश करिए. लेकिन उसके पहले आप ‘अपने मुताबिक’ को खूब ठीक से परिभाषित कर लीजिए. अपने मुताबिक को आप ठीक से नहीं समझेंगे तो आप सफल होने के चक्कर में अन्याय करेंगे. ध्यान रखिए अपराधी और गलत लोग भी अपने मुताबिक नहीं जी रहे हैं. वे भी परिस्थितियों के दास हैं. आपको मैं कहूं कि आपका अपने मुताबिक जीवन जीने का मतलब क्या है तो आप क्या कहेंगे? खूब सोचिए………जन्मों का मामला है, जल्दी क्या है
hoping helps you any doubt comments below follow me
अपने मुताबिक जीवन? क्यों जी आप अपने मुताबिक जीवन जी रहे हैं क्या?
समस्या यह है कि मन स्थिर नहीं है. परिणाम यह हो रहा है कि कोई काम वैसा नहीं बन पाता जिसकी कोशिश हम करते हैं. काम में सफलता की दर? किसी के लिए 5 प्रतिशत, किसी के लिए 10 प्रतिशत और बहुत ज्यादा हुआ तो 15-20 प्रतिशत. यह मैं जीवन में सफलता का रेशियो बता रहा हूं. दुर्भाग्यशाली वे हैं जो एक-दो प्रतिशत सफलता के साथ जी रहे हैं. ऐसे लोगों की संख्या बहुत है. जो 5-10 प्रतिशत सफल है वह औसत और जो 15-20 प्रतिशत सफल है वह हमारा आदर्श. ऐसे लोग सफल आदमी के तौर पर हमारे बीच स्थापित हो जाते हैं.
हम सोचते कुछ हैं होता कुछ है. क्या मैं-क्या आप. सबकी यही कहानी है. और असफल आदमी का व्यवहार कैसा होना चाहिए? वैसा ही होता है जैसा हममें से बहुतों का है. तनावग्रस्त, चिड़चिड़ा, हर समय नकारात्मक. सवाल यह है कि क्या आप ऐसा होना चाहते हैं. क्या आप वह दिखते हैं जो आप दिखना चाहते हैं? नहीं जी, कौन बुरा दिखना चाहता है. न आप, न मैं. लेकिन असफलता हमारे जीवन में कुछ ऐसी आ गयी है कि हम चाहकर भी वह नहीं रह पाते जो हम वास्तविक रूप में हैं. फिर लोग कहते हैं कि फलां आदमी तो ऐसा है, उसमें ये बुराई है, उसमें यह कमी है.
हम लोग पढ़े-लिखे लोग हैं इसलिए कर्म और प्रारब्ध को तो मानते नहीं है. पढ़ाई लिखाई भी दो प्रकार की होती है. एक होता है निकृष्ट ज्ञान और दूसरा होता है श्रेष्ठ ज्ञान. निकृष्ट ज्ञान की तो मैं बात ही नहीं करूंगा क्योंकि आज की शिक्षा व्यवस्था उसी आधार पर टिकी हुई है. लेकिन जो श्रेष्ठ ज्ञान है वह भी सत्य के मार्ग में एक सीमा के बाद बाधा बन जाता है. भगवान शिव कहते हैं – ज्ञान बंधः यानि ज्ञान बंधन है. ज्ञान के इस दर्शन में ही कर्म और प्रारब्ध का रहस्य छिपा हुआ है. जो हमारे न मानने से खारिज नहीं होता. उसका अस्तित्व है और हमारे जीवन पर उसका पूरा का पूरा प्रभाव रहता है.
हमारे कर्मों से हमारा प्रारब्ध बनता है और हमारे संचित प्रारब्ध कर्म रूप में हमें प्राप्त होते हैं. हम, आप कोई इससे मुक्त नहीं हो सकता. जो सफलता असफलता के चक्की में पिस रहे हैं उनको एक बात समझ लेनी चाहिए. सफलता, असफलता की परिभाषा हमारी बनाई हुई है. एक की सफलता दूसरे की असफलता हो सकती है. किसी के लिए 100 रूपये दिनभर में कमाना सफलता हो सकती है तो किसी और के लिए दिनभर में 100 रूपये कमाना भारी असफलता हो सकती है. इसका कोई मतलब नहीं है. यह सब निकृष्ट ज्ञान के बनाये हुए मोहपाश हैं.
सच्ची सफलता आपके अंदर छिपी है. उस सफलता को पाने के लिए किसी पूंजी-निवेश की जरूरत नहीं है. उसके लिए कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं बनाना है. हमारी सात्विकता ही पूंजी निवेश है और हमारी शुद्धता इन्फ्रास्ट्रक्चर है. सात्विकता और शुद्धता जितनी बढ़ती चली जाएगी हमारी सफलता उतनी पक्की. मैं कुछ बोलता हूं, या फिर लिखता हूं तो मुझे इस बात की चिंता नहीं होती कि यह कोई पढ़ता है या नहीं. मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि यह मेरा कर्म है और मैं इसे कर रहा हूं. जिस दिन यह चिंता हो जाएगी उस दिन मैं भी सफलता-असफलता के चक्रव्यूह में पड़ा मिलूंगा.
मेरी सफलता है कि क्या मैं अपने मुताबिक जीवन जी रहा हूं? अगर हां तो मैं सफल हूं. अगर नहीं तो प्राप्त कुछ भी हो जाए, आपकी नजर में मैं सफल हो सकता हूं लेकिन अपनी नजर में नहीं. मुझे अपनी नजर में सफल होना है. आजकल सफलता क्या है? आपके पास पैसा है, पैसे से खरीदी गयी वस्तुएं हैं और इन सबके बल पर चाटुकारों की फौज आपके आस-पास हो तो हम अपने आप को सफल मानते हैं. ऐसे बहुत से लोगों को मैं देखता हूं जिनके पास यह सब है फिर भी वे अपने आपको सफल नहीं मानते. जहां पहुंच गये वहां से आगे एक और सीढ़ी दिख जाती है.
इन चक्करों से बाहर निकलिए. यह अंतहीन सिलसिला है. कभी खत्म नहीं होगा. अपने मुताबिक जीवन जीने की कोशिश करिए. लेकिन उसके पहले आप ‘अपने मुताबिक’ को खूब ठीक से परिभाषित कर लीजिए. अपने मुताबिक को आप ठीक से नहीं समझेंगे तो आप सफल होने के चक्कर में अन्याय करेंगे. ध्यान रखिए अपराधी और गलत लोग भी अपने मुताबिक नहीं जी रहे हैं. वे भी परिस्थितियों के दास हैं. आपको मैं कहूं कि आपका अपने मुताबिक जीवन जीने का मतलब क्या है तो आप क्या कहेंगे? खूब सोचिए………जन्मों का मामला है, जल्दी क्या है
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khrajendra:
Thank you
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lOG JIvan ko isliye safal nhi bna pate qki unke pas siksha to hoti h lakin uska sahi pryog nhi kch logo k pas degree to hoti h lakin naukri nahi jiske karad vah jivan me asfal rahte h or kch logo k pas siksha b ni hoti tbi vah asfal rhte h jivan me kch prapti k liye siksha honi jruri h or ek vakyti axe krmo se b safal hota h
thanx plz mark as brainliest
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