कक्षा 11 कावय पंक्तियों के उत्तर हिन्दी
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कवि परिचय
रामनरेश त्रिपाठी
● जीवन परिचय-रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 1881 ई० में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कोइरीपुर नामक स्थान पर हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा विधिवत् नहीं हुई। इन्होंने स्वाध्याय से हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला और उर्दू का ज्ञान प्राप्त किया। इनकी कविताओं का विषय-वस्तु देश-प्रेम और वैयक्तिक प्रेम हैं। इन्होंने 20 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा की तथा हजारों ग्रामगीतों का संकलन भी किया। इनकी मृत्यु 1962 ई० में हुई।
● रचनाएँ-इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-
खड काव्य-पथिक, मिलन, स्वप्न।
कविता-संग्रह-मानसी।
संपादन-कविता कौमुदी, ग्रामगीत।
आलोचना-गोस्वामी तुलसीदास और उनकी कविता।
● साहित्यिक विशेषताएँ-रामनरेश त्रिपाठी छायावाद पूर्व की खड़ी बोली के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। इन्होंने अपने समय के समाज सुधार के स्थान पर रोमांटिक प्रेम को कविता का विषय बनाया। इनकी कविताओं में देश-प्रेम और वैयक्तिक प्रेम, दोनों मौजूद हैं, लेकिन देश-प्रेम को विशेष स्थान दिया है-
“पराधीन रहकर अपना सुख शोक न कह सकता है।
यह अपमान जगत में केवल पशु ही सह सकता है।”
‘कविता कौमुदी’ संकलन में इन्होंने हिंदी, उर्दू, बांग्ला और संस्कृत की लोकप्रिय कविताओं का संकलन किया है। ग्रामगीतों के संकलन से इन्होंने लोकसाहित्य का संरक्षण किया।
हिंदी में ये बाल साहित्य के जनक माने जाते हैं। इन्होंने कई वर्ष तक बानर नामक बाल पत्रिका का संपादन किया, जिसमें मौलिक एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ, प्रेरक प्रसंग आदि प्रकाशित होते थे। कविता के अलावा उन्होंने नाटक, उपन्यास, आलोचना, संस्करण आदि अन्य विधाओं में भी रचनाएँ कीं।
पाठ का साराशा
‘पथिक’ कविता में दुनिया के दुखों से विरक्त काव्य नायक पथिक की प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने की इच्छा का वर्णन किया है। यहाँ वह किसी साधु द्वारा संदेश ग्रहण करके देशसेवा का व्रत लेता है। राजा उसे मृत्युदंड देता है, परंतु उसकी कीर्ति समाज में बनी रहती है।
सागर के किनारे खड़ा पथिक, उसके सौंदर्य पर मुग्ध है। प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य को वह मधुर मनोहर प्रेम कहानी की तरह पाना चाहता है। प्रकृति के प्रति पथिक का यह प्रेम उसे अपनी पत्नी के प्रेम से दूर ले जाता है। इस रचना में प्रेम, भाषा व कल्पना का अद्भुत संयोग मिलता है।
यह ‘पथिक’ खंडकाव्य का अंश है। इसमें कवि ने प्रकृति के सुंदर रूप का चित्रण किया है। पथिक सागर के किनारे खड़ा है। वह आसमान में मेघमाला और नीचे नीले-समुद्र को देखकर बादलों पर बैठकर विचरण करना चाहता है। वह लहरों पर बैठकर समुद्र का कोना-कोना देखना चाहता है। समुद्र तल से आते हए सूरज को देखकर कवि कल्पना करता है मानो सूर्य की किरणों ने लक्ष्मी को लाने के लिए सोने की सड़क बना दी हो। वह सागर की मजबूत, भयहीन व धीर गर्जनाओं पर मुग्ध है तथा असीम आनंद पाता है। चंद्रमा के उदय के बाद आकाश में तारे छिटक जाते हैं और कवि उस सौंदर्य पर मुग्ध है। चंद्रमा की रोशनी से वृक्ष अलंकृत से हो जाते हैं, पक्षी चहक उठते हैं, फूल महक उठते हैं तथा बादल बरसने लगते हैं। पथिक भी भावुक होकर आँसू बहाने लगता है। पथिक लहर, समुद्र, तट, पत्ते, वृक्ष पहाड़ आदि सबको पाकर सुख व आनंद का जीवन जीना चाहता है।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1.
प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही हैं नभ में वारिद-माला।
नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है।
घन पर बैठ, बीच में बिचरूं यही चाहता मन है।
रत्नाकर गजन करता है, मलयानिल बहता है।
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता हैं।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के-
कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरू जी भर के। (पृष्ठ-142)
शब्दार्थ
प्रतिक्षण-हर समय। नूतन-नया। वेश-रूप। रंग-बिरंग-रंगीन। निराला-अनोखा। रवि-सूर्य। सम्मुख-सामने। थिरक-नाच। नभ-आकाश। वारिद-माला-गिरती हुई वर्षा की लड़ियाँ। नील-नीला। मनोहर-सुंदर। गगन-आकाश। घन-बादल। बिचरूं-विचरण करूं। रत्नाकर-समुद्र। मलयानिल-मलय पर्वत से आने वाली सुगंधित हवा। हौसला-उत्साह। विस्तृत-फैली हुई। महिमामय-महान।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘पथिक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता रामनरेश त्रिपाठी हैं। इस कविता में पथिक दुनिया के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है। कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताता है।
व्याख्या-प्रस्तुत कविता में पथिक कहता है कि आकाश में सूर्य के सामने बादलों का समूह हर क्षण नए रूप बनाकर निराले रंग में नाचता प्रतीत हो रहा है। नीचे नीला समुद्र है तथा ऊपर मन को हरने वाला नीला आकाश है। ऐसे में पथिक का मन चाहता है कि वह मेघ पर बैठकर इन दोनों के बीच विचरण करे।
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