कक्षा नववी , हिंदी पाठ क्रमांक तीन कबीर, ( परंतु वेळ स्वभाव कैसे पकडते अच्छा हो या बुरा, खरा होया खोटा, जिस से एक बार चिपट गये उसे जिंदगीभर चिपटे र रहो सिद्धांत उन्हे मान्य नही था , वे सत्या के जिज्ञासू थे और कोई मोहम्मता पुणे अपने मार्ग से विचलित नही कर सकती वेळ वे अपना घर जलाकर हात मे मुराड लेकर निकल पडे थे और उसी ओ साथी बनाने को तयार थे जो उनके हातो से अपना भी घरच जलवा सखे हम घर जारा अपना लिया मोराडा हाथ अब घर जारों तासू का जो चलै हमारे साथ वे सिर से प्यार तक मस्त मोला थे मस्त जो पुराने कृत्यों का हीसाब नही रखता, वर्तमान कर्मो को सर्वस्व नही समजता और भविष्य मे सबकुछ झाड फटकार निकल जाता है दुनियादार कीए कराय का लेखाजोखा दुरुस्त रखता है वह मस्त नही हो सकता जो अतीत का चिट्ठा खोले रहता हे व भविष्य का क्रांतदर्शी नही बन सकता जो मतवाला हे वह दुनिया के माप जोख से अपनी सफलता का हिसाब नही करता कबीर जैसे फक्कड को दुनिया की होशियारी क्या वास्ता? ये प्रेम के मतवाले थे मगर आपने को उन दिवानो मे नही गिंते ते जो माशुक के लिये सरफर कफन बांधे फिरते है ) उपर दिये गये परिच्छेद को पढ़कर प्राप्त होने वाली प्रेरणा लिखिये. plz reply it fast it's urgent!!!!!!! ans in hindi!!!!!! I will the and as brainlist but don't spam!!!!!!
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रामानंद के शिष्य परंपरा में आने वाले संतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कबीरदास हैं । कबीर चरित्र बोध भक्तिकाल और कबीर परिचई के आधार पर कहा जाता है कि कबीर का जन्म सन 1398 ईस्वी में हुआ और मृत्यु सन 1518 ईस्वी में हुई। इस प्रकार से 120 वर्ष तक जीवित रहे। उस समय लोधी वंश का दमन पूर्ण शासन चल रहा था। जिससे जनता में डर और भय का आतंक था।
इतिहासकार कबीर और सिकंदर लोदी को समकालीन मानते हैं। सिकंदर लोधी ने सन 1489 ईस्वी से सन 1517 ईस्वी तक दिल्ली पर शासन किया था। उनके के दो पदों से ज्ञात होता है कि सिकंदर लोदी ने कबीर के हाथ बांधकर उन्हें हाथी के सामने डाल दिया था। किंतु हाथी चिंघाड़ता हुआ भाग गया। इसी प्रकार उन्हें जंजीर से बांध कर गंगा में डाल दिया गया किंतु गंगा की लहरों से जंजीर टूट गई।
डॉक्टर रामकुमार वर्मा
का इस संबंध में अनुमान है कि सिकंदर लोदी के अत्याचारों से ही उनकी मृत्यु हुई होगी मगहर जाने पर भी कबीर उसकी क्रूर दृष्टि से बच नहीं पाए होंगे।
जॉन ब्रिन्स
के अनुसार सिकंदर लोदी का पूर्वी क्षेत्रों पर आक्रमण 1494 ईस्वी में हुआ था। उस समय उनकी मृत्यु मानने से उस उनकी उम्र 96 वर्ष निश्चित होती है ,जो ऐतिहासिक समय नहीं है वस्तुतः इस समय सिकंदर लोधी ने कबीर पर उक्त अत्याचार किए होंगे।
एक और जनश्रुति के आधार पर यह माना जाता है कि वह जनता में फैले इस अंधविश्वास को मगहर में मरने वाला नरक वास होता है और काशी में मरने वाले को स्वर्गवास यह अंधविश्वास दूर करने के लिए वह जीवन के अंतिम क्षणों में मगहर गए ।
अनेक विद्वानों ने कबीर का जन्म विधवा ब्राह्मणी के गर्व से हुआ मानते हैं। लोक-लाज के भय से उसने उन्हें काशी के लहरतारा तालाब के किनारे फेंक दिया था। उधर से जाते हुए नीरू और नीमा निःसंतान जुलाहा दंपति ने उन्हें उठा लिया और उसका पुत्र वत पालन पोषण किया। जिस जुलाहा जाति में इनका पालन पोषण हुआ वह कुछ समय पहले ही सामूहिक रुप से मुसलमान हो गए थे। किंतु अभी तक उनमें हिंदू संस्कार अवशिष्ट थे।
डॉक्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी
के अनुसार यह जुलाहा जाति नाथपंथी योगियों की शिष्य थी और इसमें अनेक विश्वास और संस्कार पूरी मात्रा में विद्यमान थे मुसलमान यह नाम मात्र के ही थे।
आगे चलकर कबीर रामानंद के शिष्य हो गए।