कक्षा सात की कविता अग्निपथ के
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- प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अग्नि पथ' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'हरिवंशराय बच्चन जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि, जीवन संघर्ष से भरा है, रास्तें अंगारों से बना है, लेकिन हमें इस कठिन राह पर निरन्तर आगे बढ़ते रहना है | पेड़ भले ही कितना भी मज़बूत बने खड़े हो, चाहे वह कितना भी घना हो, कितना भी विशाल हो, लेकिन उससे कभी एक पत्ते की भी छाया नहीं माँगना चाहिए । अर्थात् मनुष्य को अपने कर्म के रास्ते पर किसी का भी सहारा नहीं लेना चाहिए, चाहे रास्ते पर आग ही क्यों न बिछा हो । मनुष्य को अपना मार्ग स्वयं सुनिश्चित कर निरन्तर आगे बढ़ना होगा, यही जीवन का सार है। जीवन के मार्ग बहुत कठिन है |
Answer:
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।