कला ही जिवन है पर निबंध
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कला ही जीवन है। कला, मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक है यह मानव की मानसिक शक्तियों का विकास कर उसे पशुत्व से ऊपर उठाता है। भतृहरि का यह श्लोक मानव जीवन मे कला के मह्त्व पर प्रकाश डालता है।
साहित्य संगीत कला विहीनः।
साक्षात् पशुः पुच्छ विषाण हीनः।।
आत्म सन्तोष एवं आनन्द की अनुभूति भी इसके अभ्यास से होती है। और इसके प्रभाव से व्यक्तित्व का विकास होता है।
प्राचीनकाल के ग्रन्थों मे कला विषयक चर्चाए तथाप्राप्त कला साम्रगी से यह साबित होता है कि
मानव जीवन मे सदा ही कला की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।पहले मानव मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकारी तथा मिट्टी से पुती दीवारो पर तोता मैना बनाता था ।
मानसिक तृप्ति तथाअपूर्व आनन्द के लिये मानव अपने मन मे कल्पनाओ का संसार रचता रहता है और बाद मे उसे फ़िरचित्रकला के रूप मे ढाल लेता है। आज भी हमारे देश की नारीयाँ व्रत त्योहार तथा मंगलकारी अवसरों पर नरनारी पशु पक्षी व प्रकृतिआदि के चित्र अपनी मंगल कामना के लिये बनाती है। चित्रकला द्वारा ही रंगोली अल्पना भी पूजा स्थान पर बनाई जाती है।
प्राचीनकाल मे वही व्यक्ति सुसंस्कृत कहलाता था जो कलाओ मे निपुण होता था। एक रोचक कथा है राजकुमार सिद्धार्थ एवं यशोधरा के विवाह की जब राजकुमार यशोधरा को पसन्द करते है तब राजा शुद्धोदन यशोधरा के पिता दंडपाणि के पास अपने पुत्र का विवाह प्रस्ताव लेकर जाते है लेकिन वह अपनी पुत्री का विवाह एक अशिल्पग्य से करने को मना कर देते है।तब सिद्धार्थ को नवासी परीक्षा पास करनी पडी।
कला का स्थान सदैव ही उच्चतम रहा है।
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