कलाकार-कवि वर्ण-वर्ण को
भाव तूलि से रच सम्मोहन
जब अरूप को नया रूप दे
भरते कृति में जीवन स्पंदन
नहीं प्रार्थना इससे प्रियतर भावार्थ लिखिए
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कलाकार-कवि वर्ण-वर्ण को
भाव तूलि से रच सम्मोहन
जब अरूप को नया रूप दे
भरते कृति में जीवन स्पंदन
नहीं प्रार्थना इससे प्रियतर
भावार्थ ➲ कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘नही कुछ इससे बढ़कर’ की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि पंत जी कहते हैं कि जिस तरह कलाकार तूलिका में अपनी भावनाओं और कल्पना के माध्यम से रेखा-चित्र उकेरकर और रंग भरकर उन्हें एक नया रूप देता है, और उसी तरह कवि भी वर्ण-वर्णों को जोड़कर, शब्द-शब्दों को जोड़कर अपने भावों को प्रकट करता है, नए उनको नया रूप देता है। इस तरह इन दोनों की सम्मान और अराधना से बढ़कर कुछ नहीं है।
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