Hindi, asked by ayush672007, 2 months ago

कलाम संसद में होने वाले हंगामे से चिंतित थे। chapter name Kalam sahab ke bitay gaye aantim din ki yaad​
please help​

Answers

Answered by govindkumar123gksing
1

Answer:

डॉक्टर कलाम इस बात को लेकर चिंतित थे कि बार बार सदन की कार्यवाही स्थगित हो जाती है, सदन में काम नहीं हो पा रहा, उन्हीं कलाम साहब की आख़िरी विदाई के दिन भी सदन की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ गई और एक बार फिर कोई काम नहीं हो सका। अब यह एक विडंबना ही तो है कि नेता डॉ. कलाम को श्रद्धा सुमन तो चढ़ा आए, लेकिन एक दिन के लिए भी वो नहीं कर पाए, जो डॉ. कलाम चाहते थे यानि बिना हंगामे के, सदन में काम।

देश की तस्वीर बदलने के लिए जीवन भर काम करने वाले डॉ.कलाम अपने आख़िरी वक्त में संसद की तस्वीर बदलते देखना चाहते थे। उनके सहयोगी सृजन पाल सिंह ने डॉ. कलाम की ज़िन्दगी के आख़िरी कुछ घंटों के बारे में जो जानकारी दी है उसमें यह बात भी शामिल है कि शिलॉन्ग जाते वक्त विमान में डॉक्टर कलाम इस बात पर चर्चा करते हुए चिंतित थे कि इस देश में संसद चल नहीं पाती। काम अक्सर हंगामे की भेंट चढ़ जाता है। उनकी चिन्ता इस कदर बड़ी थी कि वो IIM के छात्रों से भी ये सवाल पूछना चाहते थे कि संसद को सुचारू तौर पर चलाने के लिए क्या किया जा सकता है, लेकिन ये सवाल पूछने से पहले ही वह इस बात से दुखी भी थे कि ख़ुद उनके पास भी इस सवाल का जवाब नहीं था।

Answered by Nikitacuty
3

Answer:

डॉक्टर कलाम इस बात को लेकर चिंतित थे कि बार बार सदन की कार्यवाही स्थगित हो जाती है, सदन में काम नहीं हो पा रहा, उन्हीं कलाम साहब की आख़िरी विदाई के दिन भी सदन की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ गई और एक बार फिर कोई काम नहीं हो सका। अब यह एक विडंबना ही तो है कि नेता डॉ. कलाम को श्रद्धा सुमन तो चढ़ा आए, लेकिन एक दिन के लिए भी वो नहीं कर पाए, जो डॉ. कलाम चाहते थे यानि बिना हंगामे के, सदन में काम।

देश की तस्वीर बदलने के लिए जीवन भर काम करने वाले डॉ.कलाम अपने आख़िरी वक्त में संसद की तस्वीर बदलते देखना चाहते थे। उनके सहयोगी सृजन पाल सिंह ने डॉ. कलाम की ज़िन्दगी के आख़िरी कुछ घंटों के बारे में जो जानकारी दी है उसमें यह बात भी शामिल है कि शिलॉन्ग जाते वक्त विमान में डॉक्टर कलाम इस बात पर चर्चा करते हुए चिंतित थे कि इस देश में संसद चल नहीं पाती। काम अक्सर हंगामे की भेंट चढ़ जाता है। उनकी चिन्ता इस कदर बड़ी थी कि वो IIM के छात्रों से भी ये सवाल पूछना चाहते थे कि संसद को सुचारू तौर पर चलाने के लिए क्या किया जा सकता है, लेकिन ये सवाल पूछने से पहले ही वह इस बात से दुखी भी थे कि ख़ुद उनके पास भी इस सवाल का जवाब नहीं था।

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