Sociology, asked by veenita7789, 1 year ago

कल्पना कीजिए की आप कैरोबियाई क्षेत्र में काम करने वाले गिरमिटिया मज़दूर हैं। इस अध्याय में दिए गए विवरणों के आधार पर अपने हालात और अपनी भावनाओं का वर्णन करते हुए अपने परिवार के नाम एक पत्र लिखें।


Anonymous: hy

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Answered by nikitasingh79
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उत्तर :  

कल्पना कीजिए की आप कैरोबियाई क्षेत्र में काम करने वाले गिरमिटिया मज़दूर हैं। इस अध्याय में दिए गए विवरणों के आधार पर अपने हालात और अपनी भावनाओं का वर्णन करते हुए अपने परिवार के नाम एक पत्र :  

आदरणीय पिताजी

सादर प्रणाम !

मैं यहां पर आकर विचित्र स्थिति में फस गया हूं। मुझे घर की बहुत याद आती है। जैसा कि बिचौलिए ने कहा था परिस्थितियां ठीक उसके विपरीत है। यहां पर हम से रात दिन काम लिया जाता है । खाने के नाम पर यह लोग न के बराबर देते हैं।जो लोग कई कई साल से यहां काम कर रहे हैं उन्हें अभी तक उनके काम के पूरे पैसे नहीं मिले हैं। थोड़ा सा सुस्ताने पर भी हमें बुरी तरह पीटा जाता है।मुझे लगता है अब यहां पर आने वाले सभी मजदूर दास बन गए हैं। हमारे पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। बहुत से लोग तंग आकर जंगलों में भाग गए थे। उनमें से जो पकड़े गए उन्हें कोड़े मारे गए। पिताजी यहां का जीवन नरक से भी गंदा है। अतः अब गांव या परिवार से किसी भी आदमी को बिचौलिए के कहने पर विदेश मत भेजना। यदि यहां से बच निकलने का मौका मिला तो मैं सीधे गांव में ही पहुंचूंगा।

सबको मेरा प्रणाम !

आपका पुत्र

कखग

आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।

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Answered by Anonymous
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Explanation:

अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।

मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।

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