Sociology, asked by goriya8411, 1 year ago

कल्पना कीजिए की आप सिविल नाफ़रमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता।

Answers

Answered by nikitasingh79
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उत्तर :  

कल्पना कीजिए कि यदि आप सिविल नाफरमानी (सविनय अवज्ञा आंदोलन) में भागने वाली महिला होती तो आप ने भी अन्य महिलाओं की तरह इस आंदोलन के विभिन्न कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाई होती। एक महिला होने के नाते मेरा जीवन मेरा कार्यक्षेत्र केवल घर की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं होता बल्कि राष्ट्र की सेवा करना भी मेरा परम कर्तव्य होता। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाती। पर्दा प्रथा का विरोध करती।महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाती।

सिविल नाफरमानी (सविनय अवज्ञा आंदोलन) 1930 ईस्वी में चलाया गया। यह सत्य एवं अहिंसा पर आधारित विशाल जन आंदोलन था । इसे पूर्ण स्वराज की प्राप्ति की दिशा में उठाया गया पहला महत्वपूर्ण कदम भी कहा जाता है । इस आंदोलन में समाज के हर वर्ग ने भाग लिया।  इस आंदोलन में महिलाओं का योगदान विशेष रूप से सराहनीय था।  

आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।

इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न  

नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के खिलाफ़ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।

https://brainly.in/question/9630579

1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए।

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Answered by Anonymous
6

Explanation:

समाजशास्त्र एक नया अनुशासन है अपने शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र का अर्थ है – समाज का विज्ञान। इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।

अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।

मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।

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