कल्पना कीजिए कि ईश्वर आपके समक्ष खड़े हैं आप उनसे क्या वरदान मांगेंगे?
Answers
मैं ईश्वर से मेहनत, सच्चाई, इमानदारी, परोपकार ईश्वर भक्ति तथा दुखों को सहने की शक्ति प्रदान करने का वरदान मांगूंगा ताकि मैं अपना सारा जीवन मानव सेवा और मानव भलाई में लगा सकूं।
Answer:
अरे वाह! क्या सच में संभव है यह?
क्या ईश्वर सचमुच मेरे सम्मुख आ खड़े होंगे और कहेंगे- “माँग लो जो भी चाहिए।” ईश्वर हैं, सब इच्छाएँ पूरी कर सकते हैं।
पर बस केवल तीन ही वरदान? मेरे पास तो इच्छाओं की लम्बी सूची है। कौन से तीन वरदान माँगूँ?
अपने लिए माँगूँ, अपने परिवार के लिए माँगूँ, अपने देश के लिए अथवा फिर पूरी मानवता के लिए माँगूँ?
अच्छा है आगाह कर दिया आपने। विचारने का समय तो मिला। अकस्मात् आ खड़े होते ईश्वर तो अगड़म शगड़म सा कुछ माँग बैठती मैं। अब ठीक से सोच के तय कर सकती हूँ।
स्वार्थी न होकर मैं सब के हित की बात कर लूँ कि भगवान भी ख़ुश हो जायें। आख़िर तो सब उन्हीं की संतान हैं।
अब थोड़ा गंभीर हुआ जाये।
१- आस पास इतना अन्याय देखती हूँ। अच्छे लोग दुख पा रहे हैं और बुरे ऐश कर रहे हैं। हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं कि ‘यह सब पिछले जन्म के कर्मों का फल है।’ मान लेते हैं। और विकल्प ही क्या है? पर यह तो पता चले कि किस कर्म की क्या सज़ा मिली है हमें? भारतीय कोर्ट लाख बदनाम सही, कम से कम यह तो बताते हैं न कि आप ने फ़लाँ को जान से मारा, उसी के दण्ड स्वरूप फाँसी की सज़ा दे रहा हूँ।’ लिखित में देते हैं जनाब। कोई घपला नहीं।
और पारितोषिक मिलता है तो वह भी स्पष्ट। “फ़लाँ ने डूबते को बचाया। उसे बहादुरी का मेडल दिया जाता है।”
तो फिर तुम्हारी न्याय व्यवस्था इतनी दबी ढकी क्यों है ईश्वर? तानाशाह हो तुम? कम्युनिज़म है क्या तुम्हारे यहाँ?
एक तो पिछले जन्म का सब सफ़ाचट कर देते हो हमारी बुद्धि से। कुछ भी तो स्मरण नहीं रहता हमें। और फिर दण्डित करते समय कुछ explain भी नहीं करते।
तो पहला वरदान तो मैं यही माँगती हूँ कि- “जन्म के समय हमारे साथ उसके पूर्व जन्म का रिपोर्ट कार्ड संलग्न हो। अच्छे और बुरे कर्म दोनो का। क्या क्या अपराध किये और उनकी क्या सज़ा मुक़र्रर हुई है? और जो अच्छे कर्म किये हैं उनका भी क्या पारितोषिक देने वाले हो यह सब। तभी न जाने पायेंगे हम कि हमारे साथ न्याय हुआ है कि नहीं? इससे एक तो हमें स्वयं में सुधार लाने में प्रेरणा मिलेगी। यह तो न सोचेंगे कि हमारा पड़ोसी इतना क्रूर है, भ्रष्ट है तो भी ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं उसके पास और हम भला करके भी दण्ड पा रहे हैं।
तो हम अच्छे बने ही क्यों?
होना तो यह चाहिए कि वार्षिक रिपोर्ट मिलती रहे हमें पर तब शायद तुम्हारे मुलाजिमों पर काम बहुत बढ़ जायेगा। तुम बस एक ही बार बता दो, वही बहुत है।
२- ईश्वर आपने पुरुषों को अधिक शारिरिक बल देकर स्त्रियों के साथ बहुत नाइंसाफ़ी की है। शारिरिक बल अधिक होने से एक तो उन्होंने सारे सामाजिक कानून क़ायदे अपने ही हित में बना डाले हैं। ज़रा सी ग़लती होने पर वह अपनी पत्नी पर और कई बार तो ग़लती न होने पर भी अपनी भड़ास निकालने के लिए उस पर हाथ उठा सकता है। और जब चाहे राह चलती बच्ची को पकड़ बलात्कार कर लेता है।
एक बात और भी है। लड़का लड़की अवैध सम्बंध बनाएँ तो ग़लती तो दोनो की है। है न? फिर ऐसों क्यों कि यदि लड़की के गर्भ ठहर गया तो वह फँस जाती है और लड़का चाहे तो साफ़ मुकर जाये।
मुझे लगता है कि तुम भी पुरुष हो तभी तो आज तक स्त्रियों की वेदना नहीं समझ पाये। आज तक उसे इंसाफ़ से वंचित रखा।
३- तीसरा वरदान मेरे अपने लिए।
बहुत छोटी सी बात है। मना मत करना ईश्वर।
मृत्यु से बस एक दिन पहले मुझे अवश्य बता देना कि यह मेरा आख़िरी दिन है। ताकि मैं अपने हर सम्बंधी, हर मित्र से अलविदा ले सकूँ।
यदि किसी के प्रति अपराधिनी हूँ तो क्षमा माँग लूँ, ऋणी हूँ तो एक बार फिर उन्हें धन्यवाद दे दूँ, जिनसे शिकवे गिले हैं और मन में दबा रखे हैं उनसे मन की बात कह कर उन्हें भी क्षमा करती जाऊँ।
और यदि किसी से मन की बात कहनी थी और सही ग़लत की उलझन में टालती रही, अंतिम अलविदा से पहले वह भी कह दूँ।
बस इतनी मोहलत देना प्रभु।